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________________ सम्वाद क्या--आपने जयन्ती का व्याख्यान सुना है ? जी हाँ ! कहो--ओसवालों की उत्पत्ति किस प्रकार से हुई ? महरवान ! यह तो मैं क्या, मेरे बाप-दादा भी नहीं जानते, इस महत्वपूर्ण प्रश्नका उत्तर तो शायद ही किसीने सोचा हो । धन्य है उन महात्माओं को जिन्होंने चार चार मास बिना अन्न-जल सैकड़ों कठिनाइयों का सामना करके भी धर्मवेदी पर आत्म-बलिदानकर उन मांस मदिरा और व्यभिचार सेवित पतित श्राचार वाले क्षत्रियों की शुद्धि द्वारा संगठन कर और उन्हें जैनधर्म में दीक्षितकर आज पर्यन्त हम लोगों पर जो महान् उपकार किया है उससे हम कभी उऋण हो ही नहीं सकेंगे। परन्तु दुःखतो इस बात का है कि हम उल्टा उनके उपकारों को मुला कृतघ्नी बन गए हैं। हमारे पतन का सच पूछा जाय तो यही मुख्य कारण है। -- खैर ! बताइये अब आप क्या करेंगे ? -- हम प्रति वर्ष इसी भाँति जयन्ती महोत्सव मनाकर उन महोपकारी महात्माओं का गुण गान करते रहेंगे। क्या--यह सत्य कहते हो ? --यदि हाँ तो करो प्रतिज्ञा मैं परमेश्वर की साक्षी लेकर यह प्रतिज्ञा करता हूँ कि मेरी नसों में जहाँ तक खून का दौरा चलता रहेगा वहाँ तक प्रति दिन एक माला आचार्य श्री रत्नप्रभसूरि के नाम की भी गिनता रहूँगा, और प्रति वर्ष चाहे घर में हो चाहे परदेश में हो, अकेला हो चाहे समुदाय वेष्ठित हो, पर माघ शुक्ल पूर्णिमा को आद्याचार्य की जयन्ती अवश्य मनाऊँगा, और यही प्रेरणा मेरे सज्जन और कुटुम्बियों से भी करता रहूँगा । __शाबाश ! मित्र ! शाबाश !! श्राप जैसे कृतज्ञ महानुभावों के तुल्य ही यदि सारा श्रोसवाल समाज अपना कर्तव्य समझ ले तो हमारी उन्नति होने में किसी प्रकार का सन्देह नहीं है । अन्ततः हे ओसवाल सभाओं! सोसाइटियों! मण्डलों: । पंचायतिओं ! सम्मेलनों एवं महासम्मेलनों ! आप अपने कार्यों में यदि सफलता चाहते हो, एवं उन्नति के इच्छुक हों तो सबसे पहिले महापुरुषोंके महोपकारों को स्मरण रखने को उनकी जयन्ती मनाने का अपना एकान्त कर्त्तव्य बनालो-ओं शान्तिः ! ओं शान्तिः !! श्रओं शान्तिः !!! Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034570
Book TitleOswal Vansh Sthapak Adyacharya Ratnaprabhsuriji Ka Jayanti Mahotsav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyanpushpamala
Publication Year
Total Pages68
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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