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________________ [ ६० ] यदि आप अपने पतन के कारण को अन्तर्दृष्टि से देखोगे तोश्रापकोस्वयंज्ञात होगा कि हमारे पतन दशा का खास कारण उपकारी पुरुषों के उपकार को भूल जाना अर्थात् कृतघ्नता ही है । अब भी समय है यदि आप अपने पतन को रोक कर उन्नति करना चाहो तो श्रापका सब से पहिला यही कर्तव्य है कि अपने पर असीम उपकार करने वाले प्राचार्य रत्नप्रभसूरि के उपकार स्मरणार्थ प्रति वर्ष माघ शुक्ल पूर्णिमा को इसी भाँति सब लोग एकत्र हो उन महात्मा की जयन्ति मनाकर अपनी प्रात्मा को कृतार्थ होना समझे।। वर्तमान कृतज्ञता का युग है साधारण व्यक्तियों के अनुयायी आज उनकी जयन्तियों कैसे उत्साह पूर्वक मना रहे हैं जिसको आप आँखों से देख रहे हैं परन्तु उनसे कई हजारों गुणा उपकार करने वाले महापुरुषों के लिये आप उपेक्षा कर रहे हैं क्या यह महान् दुःख की बात नहीं है ? क्या आपके अन्दर धर्म का गौरव नहीं है ? नसों में खून नहीं है ? हृदय में हिम्मत नहीं है ? मगज में बुद्धि नहीं है ? जीव में उत्साह नहीं है ? शरीर में शक्ति नहीं है ? यदि है तो इस वक्त परमेश्वर की साक्षी से प्रतिज्ञा करलो कि हम प्रत्येक वर्ष उन महात्मा के गुण स्मरणार्थ बड़े ही समारोह से जयन्ति मनावेंगे इसको चिर स्थायी रखने को कुछ कोष भी तैयार करना आवश्यक है। प्राचार्यरत्नप्रभसूरि किसी मत पंथ समुदाय गच्छ और व्यक्ति की सम्पत्ति नहीं है पर वे सम्पूर्ण विश्व का कल्याण चाहने वाले विशेषकर जैनियों का और खास कर पोसवाल पोरवाल और श्रीमाल जातियों के परमो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034570
Book TitleOswal Vansh Sthapak Adyacharya Ratnaprabhsuriji Ka Jayanti Mahotsav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyanpushpamala
Publication Year
Total Pages68
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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