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________________ [ ५९ ] अनशन व्रत सहित नाशवान शरीर का त्याग कर समाधि पूर्वक स्वर्ग की ओर प्रस्थान किया। बाद चतुर्विध श्रोसंघ शोक सहित परिनिर्वाण काउस्सग्ग कर आपके पवित्र कार्यों का अनुमोदन किया गया । ऐसे धर्म प्रचारक महान् महात्मा का एकाएक चलाजाना जैन समाज को असह्य दु.ख का हेतु था पर निर्दय काल की कुटिल गति के सामने किसका क्या चल सकता है। प्राचार्य रत्नप्रभसूरि के पट्ट पर महान् प्रभाविक प्राचार्य यक्षदेव सूरि हुए जिन्होंने सिंध जैसी हिन्सक भूमिमें विहार कर वहाँके राजा रूद्राट् एवं उनके कुमार कक और नागरिकोंको उपदेश देकर जैनधर्म का उपासक बनाया । आपके पद पर प्राचार्य ककसूरि हुए आप राजा रूद्राट के पुत्र एवं बड़े हो धर्म प्रचारक वीर थे। आपने कच्छ और सौराष्ट्र देश में जैन धर्म की नींवडाली एवं आपके पट्टपर प्राचार्य देवगुप्त सूरि महाप्रभाविक हुए आपने पांचाल (पंजाब) प्रान्त में पदार्पण कर जैनधर्म का झन्डा फहराया। आपके पट्टपर प्राचार्यसिद्ध सूरि हुए आपका विहार पूर्व बंगाल तक हुआ । आप धर्म प्रचार करने में सिद्ध हस्त थे । जैनधर्म का प्रचार करने में आपने भरसक प्रयत्न किया और इस अलौकिक कार्य में आपको अाशातीत सफलता भी मिली-प्राचार्यरत्नप्रभसूरि, यक्षदेवमूरि, कक सूरि-देवगुप्त सूरि-और सिद्धसूरि इन पांच नाम से आज पर्यन्त उपकेश गच्छ की. वंश परम्परा चली आरही है। __ जैनियों ओसवालों, पोरवालों, एवं श्रीमालों, ! Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034570
Book TitleOswal Vansh Sthapak Adyacharya Ratnaprabhsuriji Ka Jayanti Mahotsav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyanpushpamala
Publication Year
Total Pages68
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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