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________________ [ ४१ ] के तथा समकित गृहण योग क्रियाकरवा के महाऋद्धि सिद्धि संयुक्त विधि पूर्वक वासक्षेप द्वारा शुद्धि कर उन भिन्न भिन्न जाति और वर्षों के अन्दर टूटे हुए शक्ति तंतुओं को एकत्र कर भेद भावों को मिटा कर "महाजन संघ की स्थापना की अर्थात् प्रेमरूपी सूत्र में शामिल कर समभावी बनाए । उस समय अन्य देवियों के साथ चामुण्डा देवी भी उपस्थित थी और उस पवित्र कार्य के समय वह सहसा बोल उठी कि हे भगवन् ? माप इन सब लोगों को जैन बनाते हैं यह तो बहुत अच्छा है पर यह ध्यान में रहे कि इनके जरिये जो मुझको कड्डका मड्डका मिलते हैं वह न छुड़ावेंगे तो मैं आपकी बड़ी कृपा समझूगी । इस पर प्राचार्यदेवने बड़े ही कोमल शब्दों में कहा कि तथास्तु, देवि । तदनन्तर आये हुए विद्याधरों ने राजा उत्पलदेवादि को उत्साह पूर्वक अनेकों धन्यवाद दिया और उस स्वर्ण समय की शोभा बढाने का और भी भरसक प्रयत्न 'किया। विद्याधरों ने राजादिको कहा कि हे राजन् ? आप अपने को धन्य भाग समझिए आपका प्रबल पुण्योदय है कि ऐसे पवित्र महात्माओं का साक्षात्कार हो पाया है। अब हमें पूर्ण विश्वास है कि आप लोग अपने स्वी. कृत अमूल्य धर्म के साधनों का पालन करते हुए आत्मकल्याण करेंगे और अधर्म पाखण्ड का मोह सर्वथा नष्ट करेंगे। तब राजा ने उन महानुभावों के शब्दों की सराहना कर धन्यवाद दिया और अपने वहां रहने के लिये बहुत आग्रह किया। इस पर नूतन स्वधर्मी भाइयों का उत्साह वृद्धि के लिये उन्होंने स्वीकार कर मापस में वात्सल्यता बतला कर सूरीश्वरजी के चरण कमलों में Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034570
Book TitleOswal Vansh Sthapak Adyacharya Ratnaprabhsuriji Ka Jayanti Mahotsav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyanpushpamala
Publication Year
Total Pages68
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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