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(३) धर्म- जैन तीर्थकरों ने सम्पूर्ण ज्ञान द्वारा सकल प्राणियों के कल्याणके हेतु "अहिंसा परमो धर्मः” सत्य, शील, क्षमा, दया विवेक, संवर, इन्द्रियों का दमन, कषायों पर विजय, देव पूजा, गुरु उपासना, स्वधर्मी भाईयों से वात्सल्यता और परोपकारादि धर्म के साधन बतलाये हैं उन्हीं परमात्मा के चलाये हुए धर्म को ही हम धर्म मानते हैं ।
(४) आगम - जिन आगमों में परस्पर विरोध भाव नहीं है। आत्म ज्ञान, अध्यात्मज्ञान, तत्त्वज्ञान, आसन, योग; समाधि, आत्मवाद, ईश्वरवाद, परमाणुवाद, कर्मवाद, क्रियावाद, साधु और श्रावक धर्म की मर्यादा इत्यादि जनता को सद्मार्ग बतलाया गया है वे ही सत्य शास्त्र हैं ।
नरपते ! इन चारों तत्त्वों पर पूर्ण श्रद्धा रखने मात्र से जीव सद्गति का अधिकारी बन सकता है। अब जैन धर्म पालन करने वाले महानुभावों का संक्षिप्त में परिचय करा देता हूँ ।
जैन धर्म पालन करने वालों के मुख्य तीन दर्जे हैं । (१) सम्यग् दृष्टि, (२) देशव्रती (३) सर्व व्रती (१) सम्यग् दृष्टि - पूर्वोक्त देव, गुरु, धर्म और शास्त्रों पर अटल श्रद्धा रखता हुआ इनको ही उपासना करता रहे पर उससे किसी प्रकार का नियम, व्रत पालन न हो सके । तथापि वह श्रद्धा मात्र से सद्गति का अधिकारी हो सक्ता है ।
(२) देशव्रती : - यह गृहस्थ धर्म है । पूर्वोक्त पार तत्त्वों पर श्रद्धा रखता हुआ, जीवादि पदार्थों का अच्छी
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