________________
[ २२ ] सूरीश्वरजी के चरणों में मस्तक नवा दीनतापूर्ण भावों से प्रार्थना की। ___"श्रेष्टी गुरुचरस्मे शिरो निवेश्य एवं कथयति, भो दयालो ! मम देवो रुष्टः मम गृह: शून्यो भवति, तेन कारणेन मह्यं पुत्रभिक्षां देहि"
हे भगवन् ! आप समर्थ हैं रेख में भी मेख मार सकते हैं, हम पामर प्राणियों पर दया करो आज हमारा सूर्य अस्त हो रहा है, सम्पूर्ण राजगृह शून्य हो रहा है, हमारे पर किसी दुष्ट देव ने कोप किया है, अब हम आप ही की शरण के आश्रित हैं। आप कृपा कर मुझे पुत्ररूपी भिक्षा प्रदान करें। इस पर देवी के कथनानुसार प्रांसुक पानी मंगवाया और तत्पश्चात् गुरु महाराज के चरणांगुष्ठ का प्रक्षालन कर
"गुरुमा प्रांशुक जलमानीय चरणौ प्रक्षाल्य तस्य उपरि छांटितं" वह प्रक्षालन का जल मन्त्रीपुत्र पर छिड़कते ही वह सावधान हो शीघ्र उठ बैठा हुआ । कहा है कि
"सहसोत्कारणंसज्जो बभूव” फिर तो क्या देर थी दारुण दुःख और महान् शोक का समय हर्ष और आनन्द मंगल में परिवर्तित होगया।
"हर्षवादित्राणि बभूवुः" चारों ओर हर्ष के बाजे बजने लगे। सब के मुख मुद्रा पर खुशी के नूर बरसने लगे, कुम्हलाए हुए
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com