SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 21
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ १७ ] सूरिजी ने अन्यत्र विहार किया किन्तु वहाँ भी पूर्ववत् हो स्थिति रही, इस भांति मुनियों की भी उत्तरोत्तर तप वृद्धि होती रही । आचार्य श्री ने इधर उधर परिभ्रमण कर पुनः उपकेशपुर में पदार्पण किया, क्योंकि सूरीश्वरजी इस बात से भली प्रकार परिचित थे कि उपकेशपुर वाम मार्गियों का केन्द्र स्थल है अतः सबसे पहिले वहां की जनता को बोध दिया जाय, और ऐसा करने से निकटतर वासियों के लिये भी मार्ग निष्कंटक बनजायगा किन्तु मुनियों के लिए भिक्षा का प्रश्न तो उत्तरोत्तर जटिल बनता गया । मुख्य २ मुनियों ने विनय पूर्वक अर्ज की कि पूज्यवर ! सब साधु समान नहीं होते । बहुत समय से वे अपना काल बिना आहार के व्यतीत कर रहे हैं, भविष्य में बिना आहार के निर्वाह होना शक्य है, मुनियों की रक्षा के लिए श्राचार्य देव ने फरमाया कि यदि ऐसी ही दशा है तो यहां से विहार करो। इस आदेश के मिलते ही मुनीश्वर विहार करने को उद्यत हो गये । यह वृत्तान्त वहाँ की अधिष्ठात्री देवी चामुण्डा को ज्ञात हुआ, उसने विचारा कि आबू की अधिष्ठात्री ने ऐसे परम पुनीत महात्मा को हमारे क्षेत्र में भेजा है, ऐसी दशा में यदि मुनिगण भूखे प्यासे यहाँ से विहार कर चले गये तो उसमें मेरी क्या शोभा होगी ? अतः ऐसा यत्न करना आवश्यक है कि आचार्य श्री यहां से बिहार न करें, इसी प्रयोजन से देवी ने सूरिजी से यह विनय की । ३ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034570
Book TitleOswal Vansh Sthapak Adyacharya Ratnaprabhsuriji Ka Jayanti Mahotsav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyanpushpamala
Publication Year
Total Pages68
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy