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जैन जाति महोदय. पाकर व्याख्यान श्रवण करने को आये करते थे-एक समय आचार्य श्री संघ के साथ सिद्धाचलजी की यात्राकर अर्बुदा ' चलकी यात्रा करनेको आये थे वहांपर व्यापार निमित्त आये हुधे श्रीमालनगर के कितनेक शेठ शाहुकार सुरिजी की अहिंसामय दशना श्रवण कर विनंति करी कि हे भगवान् । हमारे वहाँ तो प्रत्येक वर्ष में हनारो लाखो पशुओंका यज्ञमें बलिदान हो रहा है और उसमेही जनता की शान्ति और धम्म माना जाता है आज आपका उपदेश श्रवण करनेसे तो यह ज्ञात हुवा है कि यह एक नरकका ही द्वार है अगर आप जैसे परोपकारी महात्माओंका पधारना हमारे जैसे क्षेत्रमें हो तो वहां की भद्रिक जनता आप के उपदेशका अवश्य लाभ उठावे इत्यादि विनंति करनेपर सूरिजीने उसे सहर्ष स्वीकार कर ली जैसे चितसारथी की विनंति को कैशीश्रमणने स्वीकार करी थी। समय पाके सूरिजी क्रमशः विहार कर श्रीमालनगर के उधानमे पधार गये जिन्होंने अर्बुदाचल पर विनंति करी थी वह सजन अपने मित्रोंके साथ सूरिजी की सेवा उपासना करनेमे तत्पर हो सब तरहकी अनुकूलता करदी उसी दिनों में श्रीमालनगरमें एक अश्वमेघ नामका यज्ञ की तैयारी हो रही थी देश विदेश के हजारों ब्राह्मणाभास एकत्र हुवे इधर हजारों लाखो निरापराधि पशुओं को एकत्र कीये है एक बड़ा भारी यज्ञ मण्डप रचा गया था घर घरमें बकारा भैंसा बन्धा हुवा है कि उनका यज्ञमें बलिदान कर शान्ति मनायेंगे इत्यादि। इधर सूरिजी के शिष्य नगरमें भिक्षा को गये नगरका हाल देख वापिस आ गये। सूरिजी को अर्ज करी कि हे भगवान् ! यह नगर साधुओं को भिक्षा लेने लायक नहीं है सब हाल सुनाया सूरिजी अपने कितनेक
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