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________________ श्रीमाल - नगरसूरिजी .. ( १५ ) विज्ञान शिष्यों को साथ ले सिधे ही राज सभामें गये जहां पर -यज्ञ सम्बंधि सब तैयारीयां और सलावों हो रही और वडे वडे झटाधारी सिरपर त्रिपुंड्र भस्म लगाये हुवे गलेमें जीनौउके तागे पडे हुवे मांस लुब्धक ब्राह्मणाभास बेठे थे आचार्यश्रीका अतिशय तप तेज इतना तो प्रभावशाली था कि सूरिनीका आते हुवे देखतें ही राजा जयसेन आसन से उठ खडा हुषा कुच्छ सामने आके नमस्कार किया सूरिजीने " धर्म लाभ दीया उसपर वहां बैठे हुवे ब्राह्मण लोग हंसने लगे. राजाने पहिले कभी धर्मलाभ शब्द कॉनोंसे सुनाही नहीं था वास्ते सूरिजी से पूच्छा कि हे प्रभो ! यह धर्मलाभ क्या वस्तु है - क्या आप आशीर्वाद नहीं देते हो जैसे हमारे गुरु ब्राह्मण -लोग दीया करते है । इसपर सूरिजीने कहा: , हे राजन् कितनेक लोग दीर्घायुष्य ( चिरंजीवो) का आशीर्वाद देते है पर दीर्घायुष्य नरकमें भी होते है कितनेक बहु पुत्र का आशीर्वाद देते है वह कुकर कुर्कटादिके भी बहु पुत्र होते है परं जैन मुनियोंका धर्मलाभ तुमारा सर्व सुख अर्थात् इस परलोकमें तुमारा कल्याण के लिये है यह विद्वत्तामय शब्द सुन राजाको अतिशय आनंद हुवा राजाने सूरीजीका आदर सत्कार कर आसनपर विराजने कि अर्ज करी सूरिजी अपनी काम्बली विचाके घिराज गये. उस समय के राजा लोगों को धर्म श्रवण करने का प्रेम था. राजाने नम्रता पूर्वक सूरिजी से अर्ज करो कि हे भगवान् ! धर्मका क्या लक्षण है किस धर्म से जीव जन्म मरण के दुःखोसे निवृति पाता है ? सूरिजीने समय पाके कहा कि: Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034569
Book TitleOswal Porwal Aur Shreemal Jatiyo Ka Sachitra Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyanpushpamala
Publication Year1929
Total Pages78
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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