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ईसाई लोग रविवार के दिन को पूजा और सम्मान का दिन मानते हैं, इसलिये पादरी साहब, आप यदि पक्षपात को छोड़ कर विचार करके देखें तो आप लोग भी मूर्ति पूजा से अलग नहीं हैं क्योंकि आपके यहाँ यह कहावत बहुत प्रसिद्ध है कि
One picture is brings ten Thousands words) "धन पिक्चर इज विंगस टेन थाउजेन्टस वर्डस " अर्थात् एक मूर्ति दस हजार शब्दों के समान ज्ञान कराती है । श्रथवो यो कहें कि दुनिया में कोई भी ऐसा मत नहीं जो किसी न किसी तरह मूर्ति पूजा को नहीं मानता हो, इसलिये मिष्टर पादरी साइब, सुनिये और ध्यान देकर विचारिये कि - " मूर्ति - पूजा " दुनिया में अनादि काल से चली आ रही है, कोई अपने गुरुश्र की चित्रों (तस्वीरों को, कोई अपने वशंजों ( खानदानों या बुजुर्गों ) की जमीन को तो कोई अपने धर्म पुस्तकों को शिर | झुकाते हैं, सम्मान करते हैं, क्या यह 'मूर्ति-पूजा' नहीं है ?
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अन्त में पादरी साहब ने भी मूर्ति पूजा स्वीकार ली और महात्मा दादाजी को सप्रेम प्रणाम किया ।
अनन्तर दादा दादूरामजी ने श्री ज्ञानचन्दजी तेरह-परन्थी ! जैनी से कहा- क्यों ज्ञानचन्दजी आप तो मूर्ति-पूजा को मानते हैं।
तेरहपन्थी - ज्ञानचन्दजी- नहीं महाराज, हम प्रतिमा पूजा को किसी तरह भी ठीक नहीं मानते ।
[-दादाजी - कहोजी, मूर्तिपूजा को नहीं मानने का कारण क्या ? पंथी - महाराज, प्रतिमा अजीब है, अजीब की बंदना या पूजा | करने से इच्छा पूरी नहीं हो सकती ।
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