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(६५) वादोजी-महाशयजी, आप अपने इन प्रश्नों का उत्तर ध्यान
कर सुनिये:मूसिक-पूजक मूर्ति पर फूल, फल, बन्द, धूप, दीप मादि पदार्थ इसलिये चढ़ाते है कि-वस्तु के बिना भाष नहीं होता
और माष के बिनाद भक्ति नहीं हो सकती और हद भक्ति के विना ईश्वरीय ज्ञान कठिन ही नहीं बल्कि असम्भव है, इसलिये मुर्तिको फूल फल श्रादि लेकर पूजते हैं, और फूल फल श्रादिके चढाने से जो आप हिंसा को मानते हैं, यह निरर्थक है, देखिये 'योगदर्शन' में हिंसा के विषय में क्या लिखा हुआ है ? जैसेयोग दर्शन के २ पाद २८ वां सूत्र में लिखा है कि
योग के अंगों के अनुष्ठान (संविधि-साधन ) से ज्ञानकी अंर्थात् पृथिवी आदि तत्वं विषय की वृद्धि होती है, यह शान. वृद्धि तब तक होती है जब तक योगी को प्रकृति पुरुष को साक्षात्कार याने मोक्ष या ब्रह्मानन्द वा परमसुख किम्बा परमशान्ति नहीं होती।
उक्त योग के अंग पाठ हैं, जैसे-यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि ।
इनमें प्रथम-यम पांच प्रकार का है, जैसे-अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह।
अहिंसा का सीधा सादा अर्थ है-किसी प्राणी को किसी प्रकार का कष्ट नहीं पहुंचाना, परन्तु इस सूत्र के टीकाकार लिखते है कि
___ "शौचाचमनादौ अपरिहार्य हिसायां तु न दोषः । ...अर्थात् शौच (पाखाना, पेशाब, स्नान आदि) में और
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