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(१३) कुछ और होगया । कालूराम जब हर तरह से अधिक दुःखी हुये तब पाखण्डपनों के सहारे अपनी बीमारी का पूरा इलाज किया, जब उससे भी इनकी दुःखरूपी दाल नहीं गली, तब ईश्वर भक्ति, नामकीर्तन, पूजन आदि की तरफ भी कुछ नजर को दौड़ाये । दुःखी आदमी भी अपने दुःखों को दूर करने के लिये ईश्वर की सेवा भक्ति करते हैं, ऐसी भगद्गीता की गर्जना है
चतुर्विधा भजन्ते मां जनाः सुकृतिमोऽर्जुन!। श्रात्तॊ जिज्ञासुरर्थार्थी ज्ञानी व भरतर्षभ ! ॥
श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि हे भरतवंश श्रेष्ठ अर्जुन चार प्रकार के लोग मुझ (ईश्वर) को भजते हैं, एक श्रात्त (दुखी), दूसरा जिज्ञासु (जानने की इच्छावाला) तीसरा अर्थार्थी (धन पुत्रादि के इच्छुक) और चौथे ज्ञानी (प्रात्मभानी) ये सबके सब मुझे भजते हैं, इसलिये वे सब पुण्यात्मा हैं मगर सबसे अच्छा ज्ञानी ही है यह मेरा सिद्धान्त है। ____मगर कालूराम की अन्तगत्मा में पाखण्डपने के विचारों का ही प्रबल प्रसार था। ऊपर बगुला भगत के जैसे कभी कुछ लोगों को दिखाने के लिये कर लेते थे या जब दुःखों का दौड़ा काबू में नहीं रहता था तब बगुला भगत बन जाते थे मगर इससे कुछ भी होने जाने वाला नहीं था। भगवद्भक्ति में तो पूरी सचाई चाहिये, सचाई की कसौटी पर सवा सोलह श्राना उतरनेवाली ही भक्ति वारतव में भक्ति है। हमेशा सत्य की विजय और झूठ की हार होती है। यदि कोई कपटी ऊपर से आडम्बर करके बगुला भगत बन जाय ता उसका निस्तार नहीं होता । यानी अन्त में वह पाखगडपन
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