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( १२) है। वम, यही बात काका कालूराम और उनके अनुयायियों को भी हुई, मगर दुनियाँ इस बात को मानती है कि
"जमाना रंग बदलता है" अर्थात् समय परिवर्तनशील है, इस सन्सार में सब ही को कभी सुख और कभी दुःख अवश्य भागना पड़ता है, यानी दुनियाँ में एक भी ऐसा श्रादमी नहीं जिसका जीवन केवल सुखमय या केवल दुखमय हुआ हो। काका कालूराम का समय ने भी पलटा खाया और दुखों के सघन अन्धकार उन्हें दीखने लगे जब कालूराम को अधिक दुःख होने लगा तब दे अपने किये हुए दुष्कर्मों को कभी कभी मन में लाकर बहुत अफसोस करते थे और भगवान् के नाम, पूजन आदि में उनकी रुचि ऊपर से कुछ कुछ होने लगी। मगर अन्तस्तल मे तो पाण्डियों के.पाखण्डपने का ही भूत सवार था। वास्तव में यह एक प्रसिद्ध बात है कि कोई जब पाप कर्म को करता है तब उससे पहले उसकी अन्तरात्मा में ऐसा एक बार अवश्य होता है कि यह दुष्कर्म करना अच्छा नहीं, इसे नहीं करना चाहिये । जब बुद्धि उस समय सत्वगुण युक्त .नर्मल होती है तब फिर वह श्रादमी उस प्रकर्म को नहीं करता, यदि बुद्धि उससे विपरीत तमोगुणवाली होती है तो दुष्कर्म से छुटकारा नहीं होता । कालूगम की बुद्धि बहुत दिनों से तमोगुण से युक्त थी, मलिन थी, इसलिए अच्छे "विचारों को आने पर भी वे उसे अपवा अमल में लाने से मजबूर थे। चूँकि यह भी एक प्रसिद्ध बात है कि हमेशा जिस वस्तु का ध्यान करें, स्मरण करें और मन में लावे| वही वस्तु उस व्यक्ति को प्रिय मालूम होती है। मगर यहाँ मामला
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