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समfast निर्मल ज्योति जगमग लागी ।
नहीं चले कर्मों का जर जाय सब भागी ।
नव दिन नव रंगा ठाठ पूजा सुखकारी ॥ श्री ज्ञान० ||२३||
वद दशम को स्वामिवात्सल्य भारी |
roat वनी है नुकतीपाक की तैयारी । स्वधर्मी मिलके भोजन कर यश लीनो ।
पर्युषणों को उत्तर पारणो कीनो ।
बने पर्युषणों का उत्सव के अधिकारी ॥ श्री ज्ञान० ॥२४॥
पौषध प्रतिक्रमणसे तप अठ्ठाई होवे ।
पूर्व ले भवके कर्म मैल सब धोवे । जन्म महोत्सव करके आनन्द पाया ।
साढे आठसौ रुपया ज्ञानमें आया ।
अब वरघोर्डेका हाल सुनो चित्तधारी ॥ श्री ज्ञान० ||२५||
घुरे नगारा घोर कुमति गई भागी ।
निशान ध्वजाकी लहर गगन जा लागी । प्रभुकी असवारी सिरे बजारों आवे ।
मिल नरनारीका वृन्द भक्ति गुन गावे ।
पी-पी-ठंडाई मंडली न्यारी न्यारी ॥ श्री ज्ञान० ॥ २६ ॥
मिलके प्रतिक्रमण संवत्सरिक ठाया । लक्ष चौरासी जीवोंको खमवाया । स्वामिवात्सल्य शुदि सातमकी तैयारी ।
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