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मिलके श्रावक सलाह खूब विचारी ।
करले महोत्सव समवसरणकी तैयारी । जसवन्त सरायमें सुर मंडप रचवाये । थे हंडा झूमर और झाड़ लटकाये ।
शोभा सुन्दर अमरपुरी अनुहारी ।। श्री ज्ञान० ॥१९॥ तीन गढकी रचना खूब बनाई।
जिसके ऊपर था समवसरण दीया ठाइ । चौमुखजी थे महाराज जाऊँ बलिहारी । मूलनायकजी श्री शांतिनाथ सुखकारी ।
दर्शन कर कर हरष साहु नर नारी || श्री ज्ञान० ॥२०॥ है बड़ा मास भादवका महीना भारी । ___ वद तीजसे हुवा महोत्सव जारी। पेटी तबला अरु ढोलक झंझा बाजे । गवैयोंकी ध्वनि गगनमें गाजे ।
संघ चतुर्विध है द्रव्य भाव पूजारी ॥ श्री ज्ञान० ॥ २१ ॥ पूजाका बनिया ठाठ अजब रंग बर्षे । __स्व पर मत जन देखी मनमें हर्षे । प्रभु भकिसे वे जन्म सफल कर लेवे । उदार चित्तसे प्रभावना नित्य देवे ।
गाजा बाजा गहगहाट नौबत घुरे न्यारी | श्री ज्ञान ॥२२॥ अष्ट द्रव्यसे थाल भरी भरी लावे ।
पूजा सामग्री देख मन हुलसावे ।
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