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ठहरकर श्रापश्रीने मेवाड़ की ओर पदार्पण किया । जोधपुर निवासी भद्रिक सुश्रावक भंडारीजी चन्दनचन्दजी भी साथ थे । चतुर्बिंध संघ सह पश्री भानपुरा और सायरे होते हुए उदयपुर पधारकर केशरीयानाथजी की यात्रार्थ पधारे । वहाँ से लौटकर श्राप पाल, ईडर, श्रामनगर और प्रान्तीज होते हुए अहमदाबाद पधारे । जब अहमदाबाद के श्रावकों को श्राप के पधारने की सूचना मिली तो वे विस्तृत संख्या में सम्मिलित हुए तथा उन्होंने मुनिश्री का नगर प्रवेश बड़े समारोह से स्वागत करते हुए करवाया । इस कार्य में यहाँ के मारवाड़ी संघने विशेष भाग लिया था । पुनः खेडा, मातर, संजीतरा, सुन्दरा, गम्भीरा और बडौदे होते हुए आप भगडियाजी तीर्थपर पधारे । वहाँ गुरुवर्य श्री रत्नविजयजी के श्रापने दर्शन किये । वहाँ से पंन्यासजी हर्षमुनिजी तथा गुरुमहाराज के साथ सूरत पधारे जहाँ श्राप का बड़ी धूमधाम से अपूर्व स्वागत हुआ ।
विक्रम संवत् १९७५ का चातुर्मास ( सूरत ) ।
चापश्री का बारहवाँ चातुर्मास गुरुसेवा में सूरत नगर के बड़े चौहट्टे में हुआ । व्याख्यान में आपश्री गुरु आज्ञा से भगवतीजी की वाचना सुनाते थे । यद्यपि आप इस समय मारवाड़ प्रान्त से दूर थे तथापि मारवाड़ के जैनियों के उत्थान की तथा ओशियों छत्रालय की चिन्ता आप को सदा लगी रहती थी । इसी हेतु आपने उपदेश देकर ओशियों स्थित जैन वर्धमान विद्या
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