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(२९) विक्रम संवत् १६७४ का चातुर्मास (जोधपुर) __ प्रापश्री का ग्यारहवाँ चातुर्मास जोधपुर में हुआ था। इस वर्ष मापने व्याख्यान में श्री भगवतीजी सूत्र फरमाया था । पाप के व्याख्यान में खासी भीड़ रहती थी। प्राप की व्याख्यान पद्धति बड़ी प्रभावोत्पादक थी । श्रोता सदा सुनने को आतुर रहते थे। समझाने की प्रणाली इस कद्र उत्तम थी कि लोग भाप के पास पाकर अपने भ्रम को दूर कर सुपथ के पथिक बनते थे। इतना ही नहीं पर एक बाईको संसार से विमुक्त कर आपने उसे जैन दीक्षा भी दी थी।
इस चातुर्मास में आपने तपस्या इस भांति की थी। पचोला १, तेला १, इस के अतिरिक्त फुटकल तपस्या भी आप किया करते . थे । तपस्या के साथ ज्ञान प्रचार के हित साहित्य में भी आप की अभिरुचि दिन प्रतिदिन बढ़ती रही। इस चातुर्मास में कई पुस्तकें तैयार करने के सिवाय निम्नलिखित पुस्तकें मुद्रित भी हुई। १००० स्तवन संग्रह तृतीय भाग । ५०० डंके पर चोट ।
___ चातुर्मास समारोहपूर्वक बिताकर श्राप सेलावास रोहट हो पाली पधारे । वहाँ बीमारी फैली हुई थी। वहाँ आपश्रीने यतिवर्य श्रीमाणिक्यसुन्दरजी प्रेमसुन्दरजी के द्वारा शान्तिस्नात्र पूजा बनवाई । फिर वहाँ से विहारकर श्राप बूसी, नाडोल, वरकाणा, खीमेल, धणी, मुंडाग होते हुए सादड़ी पधारे । यहाँ से स्तवन संग्रह प्रथम भाग तीसरी बार प्रकाशित हुआ | सादड़ी कसबे में मापने सार्वजनिक व्याख्यान भी दिये । यहाँ एक मास पर्यन्त
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