________________
( २० )
ख्यान दिया करते थे आप इस नगर में पधारते थे तब लोग कहते थे कि सूत्रों की जहाज आई है। व्यावर से विहार कर आप श्रीवर, रायपुर, सोजत, बगडी, सेवाज, कंटालिया, पाली, बूसी, नाडोल, नारलाई, देसूरी, घाणेराव, सादड़ी, बाली तथा शिवगञ्ज होकर पुन: पाली पधारे। इस बीच में आपकी श्रद्धा शुद्ध होने लगी । यद्यपि आप स्थानकवासी थे पर अंधश्रद्धा के त्यागने की अभिलाषा उत्पन्न हो चुकी थी फिर क्या देर थी ? आपकी, सोध- खोज इस विषय पर थी कि मूर्त्ति पूजा से क्या लाभ दिन व दिन यह है, जिज्ञासा बढ़ रही थी और आप विशेषतया इसी की खोज में अन्वेषण किया करते थे कि सत्य वात क्या है ? शास्त्र क्या फरमाते है ? इस कारण समुदाय में कुछ थोड़ी बहुत चर्चा भी फैली हुई थी कर्मचन्दजी कनकमलजी शोभालालजी और हमारे चारित्रनायक गयवरचन्द्रजी एवं इन चारों विद्वान मुनियों की श्रद्धा मूर्त्तिपूजाकी ओर झुकी हुई थी । पूज्यजीने इन को समझाने का बहुत प्रयत्न किया पर सत्य के सामने आखिर वे निष्फल ही हुए । आपश्री पूज्यजी के साथ जोधपुर पधारे । वहाँसे गंगापुर चातुर्मास का आदेश होने से पाली, सारण, सिरीयारी और देवगढ़ होते हुए आप गंगापुर पधारे ।
वि. सं. १९७० का चातुर्मास (गंगापुर) |
श्री का सातवाँ चातुर्मास गंगापुर में हुआ | आपने ज्ञानाभ्यास में इस वर्ष पंच संधि को प्रारम्भ किया तथा तपस्या इस प्रकार की - ठाई १, पचोला १, तेला ३, छुटकर कई उपवास ।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com