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लिया सारा कुटुम्ब सुख शांतिसे रहने लगा । प्रत्येक के चित्त में प्रसन्नता का सागर उमड़ रहा था । आप अपनी बालक्रिडाओंसे अपने कुटुम्ब के लोगों का मनोरञ्जन करने लगे। आपकी तुतली बानी सबको अति कर्ण प्रिय थी।
बाल्यावस्था से ही आप सर्व प्रिय थे। आपका सरल व्यवहार सबको रुचता था । जब आप शिशु अवस्था से कुछ बड़े हुए तो शिक्षा प्राप्ति के हित पाठशाला में प्रविष्ट हुए। वहाँ पर सहपाठियों से आप सदा आगे ही रहते थे। आपने अल्प समयमें पावश्यक एवं प्रशातीत शिक्षा ग्रहण करली । जब आप पढ़ना छोड़ कर व्यापार करने लगे थे तो आप इस कार्य में बड़े कुशल निकले । व्यापार के व्यवहार में आपकी हठोती अनुकरणीय थी। जिस कार्य में आप हाथ डालते उसे अन्ततक उसी उत्साह से करते थे । यही आपकी स्वाभाविक टेव हो गई।
बाल्यावस्थासे ही आपको सत्संगतका बड़ा प्रेम था । जब प्राम में कोई साधु या समाज सुधारक पाता तो उससे आप भवश्य मिलते थे । इसी प्रवृति के कारण भाप प्रायः स्थानकवासी साधुओं की सेवाउपासना किया करते थे । वहाँ मापने प्रतिक्रमण स्तवन स्वाध्याय तथा कुछ बोल (थोकड़े) याद करलिये। अबतक भाप अविवाहित ही थे ।
किन्तु सत्रह वर्ष की आयु में आपका विवाह सेलावास निवासी श्रीमान् भानीरामजी बाघरेचा की पुत्री राजकुमारी से
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