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(५) था। एक बार ये किसी कार्यवशात् चित्तोड़ गये हुए थे। इनको सञ्चायिका देवी का पूर्ण इष्ट था। जिस दिन लालसिंहजी चित्तोड़ पहुँचे उसी दिनसे पूर्वही चित्तोड़ के महारावली की रानी चक्षुपीडासे पीड़ित थीं । कई प्रयत्न महारावलजीने किये पर सब उपाय निष्फल हुए । योग्य चिकित्सक की तलाश करते करते राज्य कर्मचारियों को सिवानासे आए हुए मुहताजी लालसिंहजी से भेंट हुई। और उन्होंने अपना हाल सुनाया इस पर लालसिंह ने कहा यदि आप चाहो तो मैं चक्षु पीड़ा मिटा सकता हुँ । कर्मचारियोंने कहा हम तो स्वयं इसी हित आए हैं। लालसिंहजीने सच्चायिका देवी के अनुरोधसे ऐसा उपाय बताया कि रानी की पीडा तत्काल जाती रही। सारा राज समाज लालसिंहजी की भूरि भूरि प्रशंसा करने लगा। महारानीने इस उपलक्षमें लालसिंहजी को बाहरग्राम इनायत किए तथा उनको वैद्यराज की उपाधि सदा के लिये प्रदान की तबसे श्रेष्टिगोत्र की एक शाखा वैद्य मुहत्ता कहलाई।
हमारे चरित नायक मुनि ज्ञानसुन्दरजी का जन्म इसी घराने में हुआ जो उपलदेव की संतान श्रेष्टिगोत्र की शाखा वैद्य मुहत्ता कहलाता था । मारवाड़ भूमि के अनर्गत वीसलपुर ग्राम में वैद्यमुहत्ता नवलमलजी की भार्या रूपादेवी की कूख से आपश्रीका जन्म विक्रम सम्वत् १९३७ के आश्विन शुक्ला १० यानि विजया दशमी को हुआ । जब आप गर्भ में थे तो आपकी मातुश्रीको हाथी का स्वप्न पाया था तदनुसार ही आपका जन्म नाम " गयवर चंद्र" रखा गया। जबसे आपने अपने घर में जन्म
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