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(१२४.) इस उपरके लेखको वांच कर निष्पक्षपाती जन तुरत समझ जायेगे कि, विष्णुजी स्त्रीयोंसे भी डरते थे और डरके मारे उनका वध भी करते और कराते थे, इससे परमात्मा किसी तरह साबित नहीं हो सकते हैं.
मत्स्य पुराण अध्याय ४७ वे में लिखा है कि" पिशिताशाय सर्वाय, मेघाय विद्युताय च ।
व्यावृत्ताय वरिष्ठाय, भरिताय तरक्षवे ॥ १४४॥" .. शुक्राचार्यने शिवजीकी उपरोक्त श्लोकोंसे स्तुति करी है जिसका अर्थ यह है कि-" मांसके आहार करने वाले सर्व मेघ विद्युत् व्यावृत्त वरिष्ठ पुष्टि करनेवाले और रक्षा करनेवाले ऐसे तुमको नमस्कार है।' इस उपरके श्लोकसे साफ सिद्ध हो गया कि, शिवजी मांस भी खाया करते थे। " इस श्लोकका अर्थ मत्स्यपुराणके भाषांतर में " ब्राह्मणलोगोंने जैसा किया है ऐसा ही हमने यहां दाखल किया है.
अब सज्जनगणको सोचना चाहिये कि, ऐसे मांस भक्षण जैसे नीच कर्मको करनवाला परमात्मा कभी कहा जा सकता है ?, कहना ही होगा कि नहीं नहीं, यह काम परमात्माओंका नहीं किन्तु पामरोंका ही है.
मत्स्यपुराण के ६९ वे अध्यायसे और प्रथमके कितनेक अध्यायसे अनेक तिथिओंके व्रतोंका वर्णन हैं जिनमें ब्राह्मणोंकों अनेक प्रकारके दान देने लिखें हैं, उन तिथिओंको व्रत पालनेसे और ब्राह्मणोंको अमुक अमुक वस्तुओंके दान देनेसे स्वर्गमें उर्वशी अप्सराओंके संग रमण करता है, इत्यादि लिखा है.
इन लेखोंको वांच कर विचार आता है कि, ब्राह्मण लोगोंने
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