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________________ महाराजा अजितसिंहजी इनको 'महाराजा' की पदवी के साथ ही ३,५०० जात और ३,००० सवारों का मनसब (जिसमें १,००० सवार दुअस्पा थे) दिया । ___ इस प्रकार इधर के झगड़े को शांत कर जब बादशाह अजमेर को लौटा, तब महाराज भी दुर्गादास को लेकर उसके साथ हो लिए। इसके बाद बहादुरशाह ने कामबख़्श को दबाने के लिये, मेवाड़ की तरफ़ होते हुए, दक्षिण पर चढ़ाई की । इस यात्रा में भी महाराजा अजितसिंहजी, दुर्गादास और आंबेर-नरेश जयसिंहजी ये तीनों उसके साथ थे। यद्यपि बादशाह ऊपर से महाराज के साथ खूब प्रेम दिखलाता रहा, तथापि उसने प्रबंध की देख-भाल करने के बहाने काजमखाँ और मेहराबखाँ आदि अमीरों को भेजकर जोधपुर पर चुपचाप अपना अधिकार कर लिया। इसकी सूचना मिलने पर महाराज बहुत क्रुद्ध हुए; परंतु मौक़ा देख इन्हें चुप रहना पड़ा । इसके बाद जब शाही लश्कर नर्मदा के पार उतरने लगा, तब यह ( अजितसिंहजी ) अांबेर-नरेश जयसिंहजी और दुर्गादास के साथ वापस लौट चले और मार्ग में महाराना अमरसिंहजी से मिलकर मेवाड़ से गोडवाड़ होते हुए जोधपुर चले आए । १. इसी समय बादशाह ने इन्हें निशान और नक्कारा भी दिया था। साथ ही उसने इनके महाराजकुमार अभयसिंहजी का मनसब १,५०० जात और ३०० सवारों का, तथा बख्तसिंहजी का ७०० ज़ात और २०० सवारों का कर दिया था । ( मि० विलियम इरविन ने अपने 'लेटर मुगल्स' नामक इतिहास ( के प्रथम भाग के ४८ वें पृष्ठ ) में उपर्युक्त बातों का उल्लेख करते हुए बख्तसिंह के स्थान पर राखीसिंह लिख दिया है )। इसी प्रकार बादशाह की तरफ से महाराज के तृतीय और चतुर्थ महाराजकुमारों को भी ५०० ज़ात और १०० सवारों का मनसब दिया गया था। २. अजितोदय, सर्ग १७, श्लो० ३३ । ३. 'लेटर मुगल्स' में लिखा है कि वि० सं० १७६४ की चैत्र बदी ४ (ई० सन् १७०८ की २८ फ़रवरी) को बहादुरशाह ने काज़ीखाँ और मुहम्मद गौस मुफ्ती को जोधपुर में फिर से नमाज़ आदि के प्रचार के लिये भेजा । ( देखो भा० १, पृ० ४८) । ४. 'अजितोदय' (सर्ग १७, श्लो० ३४) में खाचरोद से और 'बहादुरशाहनामे' (के पृ ११०) में मालवे के मंडेश्वर नामक स्थान से इनका लौटना लिखा है। पिछले इतिहास के अनुसार यह घटना वि० सं० १७६५ की ज्येष्ठ बदी ६ ( ई० सन् १७०८ की ३० अप्रेल ) को हुई थी। ५. महाराना अमरसिंहजी (द्वितीय) गाडवा नामक गाँव तक इनकी पेशवाई में आए थे। २६५ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
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