________________
मारवाड़ का इतिहास
बादशाह ने मार्ग से ही ( पौष = दिसंबर में ) शाहजादे अज़ीमुश्शान की सेना के साथ कुछ अमीरों को जोधपुर की तरफ़ रवाना किया । इसलिये वे लोग मारवाड़ के गांवों को लूटते हुए पीपाड़ तक आ पहुँचे । परंतु इसी बीच बादशाह को दक्षिण में कामबख़्श के स्वाधीन हो जाने की सूचना मिली । इस पर दिखावे के लिये तो वह अजमेर पहुँच जोधपुर पर चढ़ाई करने का विचार प्रकट करता रहा, परंतु मन-ही-मन उसने शीघ्र ही इधर का झगड़ा शांत कर दक्षिण की तरफ़ जाने का निश्चय कर लिया। इतने में उसे महराबख़ाँ और महाराज के बीच पीपाड़ में युद्ध होने की सूचना मिली । इस पर वि० सं० १७६४ की फागुन बदी ३ ( ई० सन् १७०८ की २६ जनवरी) को उसने महाराज से संधि करने के लिये दुर्गादास के नाम एक फ़रमान भेज दिया ।
इस प्रकार आपस की लिखा-पढ़ी के बाद जब संधि की बातें तय हो गईं, तब उसने ख़ाँजहाँ, हाडा बुद्धसिंह और निजाबतख़ाँ आदि अमीरों को महाराज से मिलने के लिये रवाना किया, और वि० सं० १७६४ की फागुन सुदी १२ ( ई० सन् १७०८ की २१ फ़रवरी ) को स्वयं भी मेड़ते आ पहुँचा । इस पर महाराज भी चौथे दिन वहां पहुँच उससे मिले । बादशाह ने अनेक बहुमूल्य वस्तुएँ उपहार में देकर इनका आदर-सत्कार किया । इसके बाद उसने, चैत्र बदी १४ और ( वि० सं० १७६५ की ) वैशाख सुदी १५ (१० मार्च और २३
"
अप्रेल )
१. मुंतखिबुल्लुबाब, भा० २, पृ० ६०६ |
'लेटर मुग़ल्स' में लिखा है कि मार्ग में भुसावर पहुँचते ही उसने फ़ौजदार मेहराब ख़ाँ को जोधपुर पर अधिकार करने के लिये भेज दिया। इसके बाद जब वह जयपुर का अधिकार विजयसिंह को देकर अजमेर के क़रीब पहुँचा, तब उसने स्वयं जोधपुर पर चढ़ाई करने का इरादा प्रकट किया । इस पर महाराज के वकील मुकुंदसिंह और बख्तसिंह उसे समझा-बुझाकर शांत करने की चेष्टा करने लगे । (देखो भा० १, पृ० ४७ ) ।
२. मुन्तखिबुल्लुबाब, भा० २, पृ० ६०६ ।
को, आम दरबार कर
३. यह तारीख़ असली फ़रमान से ली गई है । 'लेटरमुगल्स' में उस दिन १२ फ़रवरी का होना लिखा है । (देखो भा० १, पृ० ४७-४८ ) ।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
'अजितोदय' में लिखा है कि पीपाड़ से महराबखों का पत्र पाकर पहले तो बादशाह ने महाबतख़ाँ को उसकी मदद पर भेजा, पर पीछे शीघ्र ही संधि कर ली । उसमें पीपाड़ के युद्ध का उल्लेख नहीं है । (देखो सर्ग १७, श्लो० ३०-३१) ।
ક
www.umaragyanbhandar.com