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मंत्रीश्वर विमलशाह देख लीजिये । केवल मुद्रिका में स्थापित मूर्ति को ही वह नमन करता है । महाराज ! उसने तो हाथी, घोडे, छत्र, चामर तथा अस्त्रशस्त्रों का खूब संग्रह कर रक्खा है। मुझे तो लगता है कि इसकी आकांक्षा बड़ी ऊँची है। आपका राज्य तो वह चुटकी बजाते ले टेगा।" इस प्रकार खूब निमक मिर्च लगाकर तथा बढ़ा चढ़ा कर बातको इस प्रकार बना कर रक्खी जैसे मानो शत प्रतिशत सच हो । ऐसे ईर्ष्यालु लोग उल्टी सीधी भिड़ाने की कला में बड़े निपुण होते हैं। इस प्रकार द्वेषीजनों ने राजा भीमदेव को खूब ही भड़का दिया।
बड़े लोग सदा कान के कच्चे होते हैं और बिना दीर्घ दृष्टि दौडाए ही बात को मच्ची मान बैठते हैं ।
राजा भीमदेव यह बात सुनते ही अत्यन्त क्रुद्ध हुए और कुछ उपाय सोचने लगे। इसी समय विमलशाह राजसभा में आ टपके । विमलशाह के तेज के आगे सभी के चहरों पर हवाइयाँ उड़ने लगती
थी। सभा में निस्तब्धता छा गई । विमलशाह ने अपना आसन ग्रहण किया।
महाराजा भीमदेव ने धीरे से विमलशाह से कहा मंत्री ! अपना महल तो बतलाओं । विमलशाह का हृदय तो निर्मल निष्कपट था। उन्हें पता नहीं था कि महाराज दाव पेच खेल रहे हैं और विघ्न संतोषी लोगों ने इन्हें चढ़ा रखा है। - विमलशाह ने पवित्र हृदय से कहा 'महाराज ! पधार कर मेरा आँगन पावन कीजिये । मेरै अहो भाग्य' धन्य केला ! आप जैसे पुण्यशालियो की चरण एब भी कहाँ से? ...
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