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मंत्रीश्वर विमलशाह बनिये । तराजू पकड़ने में भी कांपते हैं, फिर भी आपका आग्रह ही हो तो कुछ दिखाऊँ । एक बालक को सुलाकर उसके पेट पर १०८ नागरबेल के पान रखिये। फिर आप आज्ञा दें उतने ही पान बींध डालें। बालक को जरा भी चोट नहीं पहुँचेगी, महाराज ! यदि प्रतिज्ञा पूरी न करें तो मेरा जीवन आपके इंगित पर । यदि आप चाहें तो एक अन्य कला और बताऊँ ! छाछ विलौती हुई स्त्री के कानकी झूलती हुई बाली बींव डालू और फिर भी उसके कपोलों को तनिक भी चोट न आए । इतना ही क्यों ? एक व्यक्ति को पांच कोश दूर खड़ा रखिये, मेरा तीर वहाँ तक पहुँच जाएगा। इस प्रकार विमलशाह अपनी वीरता का परिचय देने लगे।
उन्होंने तो तत्काल राजा भीमदेव का ही धनुष हाथ में ले लिया। टननन....टननन का टंकार किया। टंकार की ध्वनि मात्र से योद्धागण कांप उठे । “वाह वणिक्, वाह !" सारे सैनिक एक ही स्वरसे बोल उठे।
विमलशाह की अपूर्व धनुषकला को देखकर राजा भीमदेव भी चकित हो गये । प्रसन्न होकर उन्हों ने उसी क्षण विमलशाह को ५०० उच्च कोटिके अश्व और रक्षामंत्री की पदवी अर्पित की तथा इनके छोटे भाई नेढ को भी सलाहकार के पद पर नियुक्त किया। राजा और प्रजा के आदर तथा स्नेह के पात्र बने । विमलशाह की कीर्ति दिन २ बढ़ने लगी । पर उनकी उन्नति की विशेषता यह थी कि सुख, समृद्धि, सत्ता और अधिकार की उत्तरोत्तर प्राप्ति के साथ
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