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७४] * महावीर जीवन प्रभा * के जीव देवों ने पूर्ण रक्षा की और भगवान् सकुशल किनारे पहुँचगये:
(५) लोगों का उपमर्ग-क्रमशः परमात्मा चोरा गांव पधारे, वहाँ लोगों ने हेरक ( उठाइगिरा) समझ कर कुए में ओंधे लटका दिये, पार्श्वनाथ के शासन को सोमा जयन्ति आर्याओं (मुक्त वेशवाली) ने मुक्त कराये.
(६) चोरों का उपसर्ग- अतिकर्म निर्जरा के हेतु एक वक्त स्वामी ताड़ देश पधारे, बीच में दो चोर भ्रमवश तलवार लेकर भगवान् को मारने दौड़े, इन्द्र ने कष्ट निवारण किया.
(७) लोहकार का उपसर्ग- भगवान् एक मर्तबा विशाला नगरी पधारे, वहाँ लोहकार की शाला में ठहरे, बहुत दिनों बाद लुहार वहाँ आया, देखते ही कोद्धातुर होकर 'यह मुंड अमंगल है' ऐसा कहकर लोहे के घन से मारने को तत्पर हुवा, वहाँ भी इन्द्र ने रक्षा की.
(८) कटपूतनी का उपसर्ग- एकदा माघ मास में शालिवान उद्यान में जगन्नाथ काउसग्ग ध्यान रहे, वहाँ त्रिपृष्ट वासुदेव के भव में अपमानित स्त्री कटपूतना नाम की व्यन्तग्णी हुई थी, उसने तापसिन का रूप
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