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* दीक्षा *
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गुस्से होकर भगवान् को काटा, तब दुग्ध समान श्वेत रुधिर निकलने लगा, उपकार दृष्टि स भगवान् ने फरमाया "बुज्झ बुज्झ चण्डकोसिय !" यानी चेत-चेत चण्डकौशिक ! बस इतना सुनते ही उसे जातिस्मरण ज्ञान (पूर्व भव ज्ञापक ज्ञान) उत्पन्न होगया, उससे अपने पूर्व भव और करणी को जानकर पश्चाताप ( Repentance ) किया- सर्प के पूर्व भव ग्रन्थान्तर से जानना- और भगवान् को प्रार्थना की-प्रभो ! आपने मुझे दुर्गति से उद्धृत किया, यह कहकर उसने अनशन ग्रहण कर एक पक्ष पर्यन्त बिल में मुख रखकर शान्त पड़ा रहा, उस वक्त घी-दुध बेचने वाले उसपर घी-दूध चढ़ा जाते, उसकी गन्ध से असंख्य चिटियों आ-आकर उसके शरीर को फोल फोल कर खाने लगी, अत्यन्त पीड़ा सहन करता हुवा प्रभु की दृष्टिरूप सुधावृष्टि से भीजा हुआ समता भाव से मर कर आठवें स्वर्ग में उत्पन्न हुवा.
(४) सुदुष्ट देव का उपसर्ग-श्वेताम्बिका होकर विश्ववन्द्य सुरभि पुरी नगरी के निकट पधारे, रास्ते में नौका से गंगा नदी उतरे, त्रिपृष्ट वासुदेव के भव में माग हुवा सिंह का जीव जो सुदुष्ट (सुदाढ) नाम का नागकुमारदेव था, उसने पूर्व वैरवश नौका को डूबाने का भरसक प्रयत्न किया; पर जिनदास श्रावक के संबल-कम्बल बेलों
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