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* महावीर जीवन प्रभा *
रहे. रात्री के समय यक्ष प्रकट होकर खड़खड़ाट हँसने लगा; हाथी के रूप से भगवान् को उछाले, राक्षस रूप से छूरा निकाल कर डराये गये और सर्प रूप से दंसेतथापि प्रभु चलायमान न हुए; तब उस दुष्ट ने परमात्मा के १ मस्तक में २ कानों में ३ नाक में ४ दान्तों में ५ नखों में ६ नेत्रों में और ७ पीठ में; इन मात स्थानों में महति वेदना उत्पन्न की, इतना करने पर भी अपने ध्यान से लेशमात्र भी न हिले, तब नाचार होकर भगवान् से अपने अपराध की माफी मांगी और गीत, गान, नाटकादि से भक्ति कर चला गया- यहाँ यक्षराज को 'सम्यक्तव' प्राप्त हुवा पिछली रात में भगवान् को दो घटिका मात्र निद्रा आई, इसमें आपने भावि लाभप्रद दस स्वप्न देख; जिसका विवरण कल्प सूत्र से जाना जासकता है.
(३) चण्डकौशिक का उपसर्ग-एक दफा भगवान् श्वेताम्बी नगरी की ओर पधार रहे थे कि रास्ते में एक मुसाफिर ने कहा- भगवन् ! आप इस रास्ते होकर मत जाईये, रास्ते में दृष्टिविष सर्प रहता है, उधर पक्षी तक भी नहीं उड़ सकते हैं; प्रभु ने उस कठिनतर रास्ते जाना ही पसन्द किया, क्रमशः सर्प के बिल के सामने जाकर ध्यानस्थ खड़े रहगये, द्विजिव्हा को मालूम होते ही सूर्य के सामने दृष्टि कर भगवन्त पर फैंकी, पर कुछ भी असर न होने से
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