________________
*जन्म *
किया- भाईयों के परस्पर प्रेम के लिए तो 'राम-लक्षमण' जगत में मशहूर हैं हीं; परन्तु भगवान महावीर का नैतिक व्यवहार एक आदर्श गुण था, आज कल के स्वार्थ परायण भाईयों का बड़ा अटपटा सम्बंध है, उन पैसों के गुलामों को सच्चा भाई का नाता निभाना नहीं आता, असली तत्व तो यह है कि तमाम सम्बंध, समग्र व्यवहार और समस्त कार्य स्वार्थ के त्याग बिना निभ नहीं सकते, प्रतिज्ञा पूर्ण होते ही गृहस्थावास में भी भगवान् ने साधुवृत्ति का पालन किया, इससे यह स्पष्ट है कि इन्सान चाहे तो घर बैठे ही गंगा-स्नान कर सकता है, यानी गृहवास में 'ही त्याग मार्ग का आराधन कर सकता है; तो जो खङ्गधारा समान चारित्र को अङ्गीकार करे उसका तो कहना ही क्या ? वह तो वन्ध और स्तुत्य है- भगवान् ने वर्षीदान देकर संसार को दान धर्म समझाया; गृहस्थों के लिए सचमुच ही दान धर्म मोह-ममता को कम करने वाला है तथा परस्पर प्रेम सम्बंध को जोड़ता है और बढ़ाता हैपेटार्थी लोग तो मात्र “सुपात्र दान दो यानी हमको दो बाकी सब को देने में पाप है" यही उपदेश करते हैं और संसार भर के दान मार्ग को रोक कर भारी अन्तराय कर्म का बंधन करते हैं. वहारे स्वार्थी संसार वहा ! तेने भी पेट पालने के लिये खूब गजब ढाया है- क्या आप भी इससे भ्रातृप्रेम-त्यागमार्ग और दान-धर्म का बोध लेने की ख्वाइश रक्खेंगे ? जीवन को सुखी बनाना हो तो अवश्य
बोध पाठ ग्रहण करें. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com