________________
६२]
* महावीर जीवन प्रभा *
के प्रकरण चौथा
दीक्षा
( महोत्सव )
भगवान् का निष्क्रमण काल जानकर तमाम इन्द्रों ने बड़ा भारी महोत्सव किया- स्नान, विलेपन कराकर वस्त्राभूषण धारण कराये, एक रत्नजड़ित पालखी में परमात्मा । को पूर्वाभिमुख विराजमान किये, इस सुखासन को सुरेन्द्रों ने बड़े उत्साह से और हर्ष से उठाया, छत्र-चामर - मुकुटादि राजचिन्हों से प्रभु को अलंकृत किये, आगे १००० एक हजार योजन इन्द्रध्वज चलता था, देवों पंचवर्ण के पुष्पों की वृष्टि करते चलरहे थे, कितनेक देव दुंदुभी बजाते थे और कितनेक नृत्य करते जाते थे, वाजिन्त्रों का मंगल- घोष गगन को गूंजा रहा था- सिन्दूर से पूजित कुम्भस्थल वाले मातंग घण्टियों का आवाज़ करते चलते थे, १०८ रथ और १०८ घोड़े पर सवार सशस्त्र-वीर सुभट चलते थे, पीछे शंखधर, चक्रधर, गदाधर, और जयनाद करने वाले बड़े आनन्द से चलते थे, संख्या-तीत नर
नारियाँ इस जलूस में साथ चलती थीं, पीछे पीछे हाथी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com