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* गर्भावस्था *
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करिण्यधिस्कन्धमधिश्रिताऽहं । भ्रमामि दानानि मुदा ददामि ३ समुद्र-पाने मृतचन्द्रपाने । दाने तथा दैवत भोजने च ॥ इच्छा सुगन्धेषु विभूषणेषु । अभूच्च तस्या वरपुण्यकृत्यैः॥४॥
भावार्थ-सुपात्र का सत्कार मैं कैसे करूं ? शत्रुजयादि तीर्थों की यात्रा में किस तरह करूं? सद्दर्शनियों के यानी त्यागियों के (मुनिवरों के) चरित्र को नमस्कार करूँ और सम्यक्तर भूषित देवताओं का मैं आराधन करूं १ कारा वास से दीन बन्दीवानों को निकाल कर उनको स्नान कराऊँ और उन क्षुदातुरों को भोजन करा कर उन सन्तुष्ठों को अपने मकानों पर भेज दूं २ समस्त पृथ्वी को बेकर्ज बना कर तथा नागरिकों को आनन्दित करके हाथी के ऊपर सवार हो मैं भ्रमण करूँ और हर्ष पूर्वक दान , ३ समुद्र पान और चन्द्रामृत पान में तथा दान में और स्वधर्मी को भोजन कराने में; एवं सुगन्ध पदार्थों में और आभूषणों में महाराणी की इच्छा उत्पन्न हुई; इत्यादि श्रेष्ठ पुण्य कार्य करने की अभिलाषा हुई. ४ ।
उपर्युक्त और शेष अवर्णित दोहलों में जो जो महाराजा सिद्धार्थ कर सकते थे, वे पूर्ण करते और जो उनकी शक्ति से बाहिर थे उन सब को इन्द्र महाराज पूरे करते थे.
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