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* गर्भावस्था *
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आहिस्ता बोलो, किसी पर क्रोध मत करो, पथ्य भोजन करो, साड़ी की गांठ कड़ी मत बांधो, खिलखिलाट पत हँसो, खुल्ले में सोओ मत, सेज बिना जमीन पर मत सोओ, तलघर (Cell) प्रमुख में नीचे मत उतरो, बाहर मत घूमो; इस प्रकार गर्भ के भार से भरी हुई त्रिसलादेवी को सम्पूर्ण मास तक सखियाँ शिक्षा देती रहीं.
त्रिसला महाराणी निम्नाङ्कित हानि कारक कार्य नहीं करती थीं-दिन में सोने से गर्भ में रहा हुवा बालक प्रमादी होता है, बहुत अंजन (काजल-सुरमा) लगाने से बालक अंधा होता है, रोने से चक्षु-रोगी होता है, अधिक स्नान
और विलेपन से दुष्ट स्वभाव वाला और व्यभिचारी होता है, तैलादि के अधिक लगाने से कुष्ट रोगी होता है, बार बार नख काटने से कुनखी होता है, दौड़ने से चपल होता है, अति हँसने से काले दांत-काले होठ-काली जवान
और काले तालुए वाला होता है। अति बोलने से लबाड़ होता है, अति सुनने से बहरा होता है, अति खेलने से गतिभंग होता है और अति पवन लेने से बालक उनमत्त होता है; इसलिए त्रिसला माता इनमें से कुछ नहीं करती थीं.
त्रिसला महारानी ऋतु के और देश के अनुकूल भोजन करती थीं और वस्त्र पहनती थीं, गर्म को हितकर
पथ्य भोजन करती थीं, वह भी मित प्रमाण में; Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com