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* महावीर जीवन प्रभा *
से इन छः प्रकार से रोगोत्पत्ति होती है; अतः गर्भवती को ये कार्य नहीं करने चाहिये.
इमही तरह गभ के छः मास के बाद विषय-सेवन गाड़ी-ऊँटादि सबारी पर बैठना, पैदल चलना, ऊँची-नीची ज़मीन पर विहरना, ऊँचे से कूदना, वज़न उठाना, झगड़ा करना, दास-दासी-पशु वगैरः को पीटना, ढीले पलंग पर सोना, शरीर प्रमाण से छोटी या अधिक बड़ी शय्या पर शयन करना, सकड़े आसन पर बठना, उपवासादि तप करना, लूखा-तीखा-कडवा-कषायला-मीठा-चीकना और खट्टा भोजन अधिक प्रमाण में करना, ज्यादा खाना, अति राग करना, अति शोक करना, इत्यादि करने से उत्तम गर्भ स्थान से भ्रष्ट हो जाता है। वास्ते गर्भवती को ऐसा नहीं करना चाहिए; इसलिये त्रिसला माता उपरोक्त कार्य नहीं करती थी. गर्भ काल में महादेवी त्रिसला को सखियाँ इस कदर हिदायतें देती थीं
मन्दं संचर मंदमेवनिगद, व्यामुच्च कोपक्रमम् । पत्थ्यं भुझ्व विधाननिविवपने, मा अट्टहास कृथाः॥ आकाशे न च शेव नैव शयन, नीचैर्बहिर्गच्छ मा। देवीगर्भभरालसा निजसखीवर्गेण सा शिष्यते ॥१॥ भावार्थ-हे सखि ! तुम धीरे धीरे चलो, आहिस्ता
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