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* गर्भावस्था *
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रियों के लिए जो जो आहार वैद्यक शास्त्र में निषेध हैं, उन का त्याग करती थीं निषेधात्मक आहार से गर्भ को इस प्रकार हानि होती है- .
वातलैश्व भवेद् गर्भः । कुब्जान्ध जड़वामनः ॥ पित्तलैः स्खलितः पिङ्गः। चित्रिपाण्डुकफात्मभिः ॥१॥ अतिलवणं नेत्रहरं । अतिशीतं मारुतं प्रकोपयति ।। अत्युष्णं हरतिबलं । अतिकामं जीवितं हरति ॥२॥
भावार्थ-चने, उड़द आदि वायुवाले आहार से गर्भ कुबड़ा-अँधा मूर्ख और बावनिया होता है, गेहूँ वगैरः पित्त वाले आहार से गर्भ गिर जाता है, दही आदि कफवाले आहार से गर्भ चित्री रोगवाला या पाण्डु रोगवाला होता है- यहाँ पर सर्व वस्तु अति खाने के साथ सम्बंध है- ॥१॥ गर्भवती स्त्री जो अति नमकीन आहार करे तो बालक के नेत्रों में हानि पहुँचती है, अति ठंडा आहार करे तो शरीर में कम्पवायु होता है, अति उष्ण आहार करे तो बलहीन होता है, और अति काम-क्रीड़ा करने से बालक मर जाता है. ॥२॥
वैद्यक शास्त्र ने यह भी बताया है कि- १ अधिक पानी पीने से २ उत्कटादि विषम आसन से ३ दिन में सोने से ४ रात्री में जागने से ५-६ लघुनीत-बड़ीनीत रोकने
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