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* महावीर जीवन प्रभा *
सेवा पूजा की है, इस वक्त काम न आओगी तो किस दिन प्रकट होगी; बाद कितनीक कुलकी वृद्धस्त्रियाँ यन्त्रमन्त्र-तन्त्र से शान्तिक-पौष्टिक कर्म करती हैं, कितनीक नैमित्तिकों को पूछताछ करती हैं- राज सभा में गीत-गानवाजिन्त्र-नृत्यादि कतइ बन्द करादिये गए, उंचे आवज़ तक से कोइ बोल नहीं सकता, महाराजा सिद्धार्थ शोक-सागर में डूब गये, राज कर्मचारी किंकर्त्तव्यमूढ होगए, राज महल सारा शुन्य होगया, राजधानी भर में चिन्ता उत्पन्न होगई है, खान-पान-दान-स्नान-बोलना-हँसना-सोना वगैरः मानो सब भूल गये हैं; कोई किसी को पूछता है तब निश्वास डाल कर उत्तर देते हैं, आँसुओं से सब के मुँह धुले नजर आते हैं, तमाम नागरिक शून्य-चित्त और दिग्मूढ बनगये हैं। इस तरह सारे नगर में सर्वत्र शोक ही शोक छागया.
३ प्रतिज्ञा-महावीर प्रभुने अपने ज्ञान द्वारा मातेश्वरी का दुःख जान कर विचार किया- क्या किया जाय? कैसे कहा जाय ? मोह की गति-विधि विचित्र है, मैंने तो माताजी के हित के लिये-सुख के लिये किया था, वह दुखःकर्ता होगया है, सच है ! नारियल के जल में शीतलता के लिये कपूर डाला जाता है वह जहर बन जाता है।
उस ही तरह मेरा किया हुवा हित जननी को अहितकर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com