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* गर्भावस्था *
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को बन्द कराने से चूहे मरगये हों, एवं चिटियों के, मकोड़े के छोटे छोटे बिल जलसे बहा दिये हों, तथा अन्य स्त्रियों पर या सौतों पर कड़कड़े मोड़े हों, कागादि के अंडे फुड़ाये हों, स्त्रियों के गर्भ गिरवाये हों, शील खण्डन किये होंकराये हों; उन दुष्ट कर्मों का यह दारूण फल है. फिर जरा झिझककर बोलती है-रे दैव ! निर्दय - पापिष्ट-दुष्ट-निष्ठुरनिकृष्ट कर्मकारक ! निरपराधी जनमारक - विश्वास घातक ! पापमूर्ते - अकार्य सज्ज - निर्लज्ज ! तू किस लिये निष्कारण वैरी बनगया है, तू प्रकट होकर कहतो सही, मैंने तेरा क्या गुनाह किया है ? इस प्रकार विलापात करती हुई त्रिसला देवी को सखियाँ पूछती हैं- हे सखि ! किस कारण तुम इतना दुःख करती हो? त्रिसला निश्वास डालती हुई बोलती है- बहिनों ! कहने योग्य कोई बात नहीं है- क्या कहूँ ! मैं मंद भागिनी हूँ, मेरा जीवन धूल में मिल गया, आगे न बोल सकी और मूर्छित होकर ज़मीन पर गिर गई, पासवालीं शीतलोपचार कर उसको होंस में लातीं हैं, फिर वह रोने लगती है और सखियों के बार बार पूछने पर गर्भ का दुःखद स्वरूप कहती हुई पुनः पुनः गस खाकर गिर जाती है; यह हकीकत जानने पर सारा राज्य परिवार चिन्तातुर बन गया, चारों तरफ हाहाकार मच गया- इस समय उलहना देती हुई कोइ सखी कहती है- हे कुलदेवि ! तुम जिन्दा हो कि मरगई, हमने सदा तुमारी भक्तिपूर्वक
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