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* महावीर जीवन प्रभा *
मनोरथ वृक्ष जड़मूल से उखेड़ दिया, नेत्र देकर फिर छीन लिये, निधान दिखा कर पीछा खींच लिया, इस देव ने मेरुपर्वत पर आरोहण कर पुनः मुझे पृथ्वी पर पटकदी, बोल तो सही! मैने तेरा क्या अपराध किया ? अर र र र ! अन्तर वेदना सही नहीं जाती ! क्या करूँ ? कहाँ जाऊं? किसके आगे पुकार करूं ? इस पापिष्ट देव ने जैसा किया है वैसा शायद कोई शत्रु भी कभी नहीं करेगा, इस अनुपम गर्भ के बिना राज्य सुख भी जहर समान है, चौदह समों से सूचित त्रैलोक्यपूजित गुणनिधि पुत्ररत्न के विना सर्व शून्य है फिर सोचती है इसमें देव का क्या दोष है ! मेरी अशुभ करणी का ही यह कटु फल है कर्म-विपाक में उल्लेख है कि- पशु-पक्षी और मनुष्य के बालकों का जो पापात्मा वियोग ( Separation ) कराता है वह सन्तान रहित होता है, कदाचित सन्तान हो तो जीवित नहीं रहती; तात्पर्य यह है कि पशुओं में गाय, भैंस, हिरनी, बकरी वगैरः के बच्चों का माता से वियोग कराया हो- पक्षियों में मोर, तीतर, कबूतर, सारस आदि के बच्चों का विरह कराया हो अथवा मनुष्यों के शिशुओं की जुदाई कराई हो तो वह प्राणी निःसन्तान होता है- शायद मुझ पापिनी ने पूर्व भव में शूक, तीतर, कबूतर आदि को पीजरे में डाले हों, ध के लोभ से बछड़ों को अन्तराय दी हो, मूषकों के दिलों में गरम पानी डलवाया हो-धुआँ दिया हो-पत्थरों से बिलों
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