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* गर्भावस्था *
हुआ; अहो! नहीं देखने पर भी मुझ पर इतना प्रेम है तो देखने पर कहना ही क्या ? अमाप प्रेम होगा, इसलिये "माता पिता के जीते हुए मैं दीक्षा ग्रहण नहीं करूंगा" चूँकि ऐसा करने पर वे मरण-शरण हो जायंगे; इसलिये ऐसी प्रतिज्ञा की; पश्चात् शरीर का एक देश हिलाया.
४ हर्ष-तब त्रिसला माता गर्भ को हिलते हुए, स्फुरते हुए, बढ़ते हुए जान कर अत्यन्त हर्षित हुई, सन्तुष्ट हुई, हृदय में आनन्दित होकर इस प्रकार पुलकित वदन से बोलने लगीं- अहो सखियों ! मेरा गर्भ किसी ने हरा नहीं, गर्भ मरा नहीं, गला नहीं, खिरा नहीं और नष्ट भी नहीं हुआ, पहिले हिलता-चलता बन्द होगया था, अब हिलता चलता है, मेरे गर्भ में कोई विघ्न नहीं है मैं भाग्यवती हूँ पुण्यात्मा हूँ-त्रिभुवनमान्या हूँ-मेरा जीवन प्रशंसनीय है, प्रभु पार्श्वनाथ मुझ पर प्रसन्न हैं। गुरुदेव भी खुश हैं ! आजन्म आराधित जैन धर्म मुझे फला है !!! गोत्र देव भी मेरे पर राजी है, इस प्रकार बोलती हुई महारानी त्रिसलादेवी की रोमराजि पुलकित हुई, नेत्र कमल विकसित हुए, मुख-चन्द्र दमकने लगा, महारानी को प्रसन्न वदन देखकर वृद्धस्त्रियाँ आशिर्वाद देने लगी, सधवाएं गीत गान करने लगी, गणिकाएँ नृत्य करने लगी स्थान-स्थान पर कुंकुम के छींटे डाले गये, शहर में जगह-जगह वजाएँ
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