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* महावीर जीवन प्रभा *
दिन व्यतीत होने पर अपने कुल में आश्रयभूत-दीपक समान - कुलशेखर - कुलतिलक-कुल दिनकर-कुलाधार - कुल कीर्तिकर - कुल वृद्धिकर - कुल निर्वाहकर - कुल यशस्कर और कुल तरुवर समान - सर्वांग सुन्दर - शशिसमान शान्त और सूर्य समान तेजस्वी पुत्ररत्न होगा - हे सुन्दरि ! बाल्य काल से मुक्त होने पर अतिशय कलावान् होगा, श्रवण मात्र से सर्व दर्शनों का ज्ञाता होगा; महा दानी, महा पराक्रमी, प्रतिज्ञा निर्वाहक और भूमण्डल पर विजय करने वाला होगा, हे महादेवि ! तुमने बड़े उत्तम स्वम देखे हैं.
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यह रुचिकर - अभिष्ट फल सुनकर त्रिसला महाराणी अत्यन्त प्रसन्न हुई, करबद्ध नतमस्तक होकर बोल उठीहे स्वामिन् ! आप का फरमान यथार्थ है निस्संदेह है, अपने परस्पर विचार मिलगये, दोनों को इच्छित और इष्ट है; पश्चात् आज्ञा प्राप्त कर राजहंसी की तरह अपने सुन्दर शयनगृह में वापस चली गईं - वहाँ जाकर सेविकाओं और सखियों को जगा कर कहने लगीं- मैंने उत्तम प्रधान - मंगलकारी महा स्वम देखे हैं, अब मैं दुबारा नींद न लूँ, वर्ना कहीं बुरे स्वम इन स्वप्न का नाश करदेंगे; इस प्रकार त्रिसला माता धर्म- जागरण करने लगीं, धार्मिक वार्तालाप में रजनीव्यतीत की.
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