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* महावीर जीवन प्रभा *
'छव्वीसवें भव में भगवान् दसवें देवलोक के पुष्पोत्तर प्रवर पुण्डरीक विमान में बीस सागर की आयुष्य वाले देव हुए; वहाँ से सत्तावीसवें भवमें जगद्गुरु महावीर देव त्रिसला देवी के कूक्षि में अवतरे; जिन का जीवन अब क्रमशः बयान करते हैं
प्रकाश-श्वेताम्बर शास्त्रों का कथन है कि मरीचि के भव में नीच गौत्र का बन्धन किया था, इससे महावीर देवानन्दा ब्राह्मणी के कूक्षि में उत्पन्न हुए, यानी भिक्षुक कुल में अवतरे; पर विचारकों की यह मान्यताहै कि उस समय में जैनों और ब्राह्मणों के भारी मनोमालिन्य था, पारस्परिक द्वेषाग्नि की ज्वालाऐं प्रज्वलित हो रही थीं; अतः ब्राह्मणों को नीचा दिखाने के लिए गर्मापहार का प्रकरण दाखिल किया गया है; यद्यपि कर्मोदय के दायरे में यह गर्भापहार की घटना संभव हो सकती है। पर तीर्थकर जैसे महान् पद के लिए अशोभनिक है; अस्तु कुछ भी हो भगवान् दसम देवलोक से च्यवकर आषाढ शुदी षष्ठी के दिन उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में माता के गर्भ में अवतरे.
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