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* पूर्वकाल *
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तपस्या की, बीस स्थानक (तप का एक विशिष्ट अनुष्ठान ) का आराधन कर 'तीर्थकर नाम कर्म' उपार्जन किया.
प्रकाश-जैन शास्त्रों की यह मान्यता है कि बीस स्थानक तप आराधन से तीर्थंकर बनता है। यदि यह सत्य है तो मात्र इस भरत क्षेत्र में से लाखों तीर्थकर होंगे; इस तरह ५ भरत ५ ऐरवत और ५ महाविदेह; इन १५क्षेत्रों में से तो इतने तीर्थकर होना चाहिए कि तीन लोक में सर्वत्र उनके दर्शन होने लगें ४०० चार सौ उपवास और २० बीस बेले (एक साथ दो उपवास) करने से तीसरे भव में तीर्थंकर बन ही जायगा; यदि यह गारन्टी हो तो, हरएक नर-नारी अपनी पूरी ताकत लगा कर कोशिस कर सकता है। ऐसी शंका यहाँ हो सकती है। परन्तु यह बात इस तरह नहीं है, इसमें समझ फेर है, सिद्धान्तों का कहना तो सत्य ही है उस तपोविधान में ही यह स्पष्ट लिखा है कि "पहिला अरिहन्त पद आराधन करते हुए उत्कृष्ट रसायन (उग्र भावना) पैदा हो तो तीर्थंकर पद प्राप्त करे" इस तरह बीसों ही पद पर उल्लेख है बस यहाँ सारा ही महा 'उत्कृष्ट रसायन' पर है, यह सब को आता नहीं और समस्त तपस्वी तीर्थकर बनते नहीं-बीस स्थानक का आराधन कर नन्दन राज की तरह तीर्थकर पद प्राप्त करने की भरसक कोशिश करना चाहिए. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com