________________
१६० ]
* महावीर जीवन प्रभा *
उनके भिन्न भिन्न थे, तरीके जुदे जुदे थे, महावीर तीव्र पथ के पथिक थे और बुद्ध मध्यम मार्गानुयाई थे, बुद्ध ने अपने धर्म की व्यवस्था में लोक- रुचि को अग्रस्थान दिया, महावीर ने इसकी पर्वाह न कर सौ टच स्वर्ण की तरह निर्दोष ठोंस मार्ग संसार के सम्मुख रक्खा, इसके योग्य जन इसको अपना कर निर्वाण पद प्राप्त कर सकेंगे.
जैन दर्शन नित्यानित्य वस्तुवाद का प्रतिपादक हर एक वस्तु का स्वगत धर्म में सदा अस्तित्व मानता है, मात्र पर्यायें ( आकृतियाँ ) संयोग वश बदला करती हैं, समय-समय पर परिवर्तन प्राकृतिक नियम का निर्वाहक और उपयुक्त है; यह सिद्धान्त सर्व व्यापी होने से इसका नाम ' अनेकान्तवाद' भी है और 'स्याद्वाद धर्म भी इसे कहते हैं. स्वाभाविक ही घन समान कठिन वस्तु मोम जैसी मुलायम होजाती है और मुलायम कठिन बन जाती है. अनेकान्त धर्म की वैचित्र्य गति बड़ी गहन है, पूर्ण अभ्यासी ही उसको समझ सकता है.
चुस्त रुढीवादियों को यह स्मरण रहना चाहिए कि वे सदा एकसा स्वप्न न देखें, जैन धर्म में समय पाकर परिवर्तन होता रहा है, तीर्थंकरों के शासन में, गणधरों के जमाने में और पूर्वाचार्यों के वक्त साधनों का परिवर्तन हुवा है, आज भी मूल वस्तु की रक्षा के लिए परिवर्तन
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com