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करुणरसकदंबकं
[७१] पियमरणे खयरीए अग्गिम्मि पवेसो। एसो मह पाणपिओ रिउणा वावाइओ न संदेहो । ता तस्स विओए हैं नो पाणे धारिउ सक्का ॥ १६॥ ता काऊण पसायं सिग्धं मह देहि भाय ! दारूणि । पियविरहदहणदड्ढं दहेमि देहं पुणो जेण ॥ १७ ॥ ताहे रन्ना भणियं भगिणी तं मज्झ ता इमं रज्जं । तुह 'संतियति मुंचसु पाणपरिच्चायबुद्धिपि ॥ १८ ॥ तो पुण भणियं तीए एवं चिय इत्थ तुम्ह बंधुत्तं । जं इट्ठविरहदुक्खियमणाए मे देसि कहाणि ॥ १९ ॥ पुणरवि बहुप्पयारं भणिया रना न जुत्तमिय काउं। अप्पाणम्मि वि पीडा विहिणा विहिया हवइ सुहया ॥२०॥ धरसु महन्वयभार हारं सिवरमणिमणहरमुयारं । जिणसु कसाए सिद्धतजावओ सुहनिहिपिसाए ॥ २१ ॥ परिहर कुदिविसेवं देवं मन्नेसु विगयरागमलं । समतिणमणिणो मुणिणो गुरुणो जीवाइतत्ताई ॥ २२ ॥ इय भणियावि न मन्नइ वयणं पुहईसरस्स सा खयरी । खयरगुणे उच्चरित्रं पुणो पुणो रुयइ तो रन्ना ॥ २३ ॥
१ मधान. २ सुपने आपना२. 3 शुलन (अध्यवसाय३५) iरने ( ४२वाम) पिशाय.
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