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उम्र के साधु मुनिराजों द्वारा प्रणीत 'भक्तामर' व 'कल्याणमन्दिर' जैसे स्तोत्रों के पाद पूर्तिरूप, 'कालु भक्तामर स्तोत्र' एवं 'कालु- कल्याण मन्दिर' आदि काव्यों को अवलोकन कर बहुत से विद्वान मुग्ध हुए हैं । श्री पूज्यजी महाराजकी देख रेख में साधुओं के शिक्षार्थ दो संस्कृत व्याकरणकी रचना हुई है, जो कि अपूर्व ग्रन्थ है, एक तो बृहत् है और एक छोटा । बडे व्याकरण का नाम है श्री भिक्षु शब्दानुशासन और छोटेका श्री कालु कौमुदी । वैज्ञानिक शैलीसे समस्त व्याकरणोंका सार लेकर व्याकरण-सूत्र व वृत्ति बनाना कम पांडित्यका काम नहीं । संस्कृत साहित्य के विद्वानोंसे अनुरोध है कि वे इन ग्रन्थोंका अवलो कन करें ।
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हम समस्त जैन एवं जैनेतर विद्वानोंसे, दार्शनिक एवं धार्मिक तत्वोंके जिज्ञासु एवं खासकर जैन- शास्त्र व साहित्य के अनुसन्धान प्रेमी सज्जनोंसे अनुरोध करते हैं कि वे जैन श्वेताम्बर तेरापन्थी सम्प्रदाय के आचार्य महाराज और उनके साधु साध्वीवर्गका दर्शन करें एवं उनके संयम, त्याग, वैराग्य तथा तपस्या मय जीवन में एक नवीन ज्योति, नवीन आदर्श, और नवीन संगठनका आदर्श सम्मेलन देखकर कृतकृत्य होवें ।
दानदया के सम्बन्ध में फले हुए भ्रम का निराकरणं
( १ ) लोक बहकान हेत बात यूँ बनाय कहे,
तेरा पंथी दान दया मूल से उखार दी । उनको बाड़ो तामे आग को लगाई नीच,
ताको कोऊ खोले तामें मनाही पुकार दी || भूखे अरु प्यासे दीन दुखियों को देवे दान,
ताको मत देवो ऐसी अंतराय डार दी । तुलसी भनंत ताको तेरापंथ मतहूकी
वाकैफीन पूरी योंही कूरी गप्प मार दी ।।
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