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उसके लगभग ही, भावी चातुर्मासमें कहाँ कहाँ, किन-किन साध, सतियों को प्रचारार्थ भेजा जायगा यह प्राचार्य महाराज श्रावकोंकी अरज तथा अन्यान्य बातोंको विचार कर स्थिर करते हैं। इस मौके पर बहुत श्रावक-श्राविकाएँ जगह जगहसे आती हैं। एक ही जगह सैकड़ों साधु मुनिराजोंका दर्शन कर उनके संगठनका एवं परस्परके विनम्र भावका प्रकृष्ट प्रदर्शन देख हृदय स्वतः भक्ति व वैराग्य रससे प्लावित हो जाता हैं। जहाँ आज भाई-भाईमें कलह, पिता-पुत्रमें कलह, स्वजन-ज्ञातिमें कलह, वहाँ भिन्न-भिन्न स्थानके भिन्न-भिन्न वयसके, भिन्न-भिन्न परिवारके ५००।६०० साधु साध्वी कैसे एक सूत्र में, एक प्राचार्यकी प्राज्ञामें, एक भगवद्भाषित धर्मकी छत्रच्छाया में, मुक्ति कामनाको एकमात्र लक्ष्य बनाकर ज्ञान, दर्शन, चरित्रके
आधार पर एवं दान, शील, तप, भावनाके बलसे अपनी आत्मोन्नति कर रहे हैं एवं साथ साथ भव्यजीवोंको सदुपदेश देकर भव-समुद्रसे तार रहे हैं यह देखने और मनन करनेका विषय है। ऐसे पुनीत अव. सर पर इतने पवित्र मूर्ति महात्माओंके दर्शनसे हृदयके पातक दूरीभूत होते हैं। ऐसे महापुरुषोंकी वाणी सुन कर भव्यजीव कृतार्थ होते हैं। भरत-क्षेत्रमें, त्रितापदग्ध संसारी जीवोंके कल्याणकामी तेरापंथी साध. साध्वियाँ देशके, समाजके, राष्ट्रके, व विश्वके गौरव-रूप हैं।
तेरापंथी साधु समाजमें विद्या प्रचार । आज कल विद्वानोंका समादर सर्वत्र है। शास्त्रोंका अध्ययन, अध्यापन, व्याख्यान आदिके लिये विद्या चर्चाकी बहुत जरूरत है। परमपूज्य पूज्यजी महाराजाधिराज सकलगुणनिधान बालब्रह्मचारी श्री श्री १००८ श्री कालुरामजी स्वामीके समयमें तेरापंथी साध सम्प्रदायमें अच्छे अच्छे विद्वान एवं पण्डित मुनिराजोंका प्रादुर्भाव हुआ है । १०।१२ वर्षकी उम्रमें दीक्षित साधगण अल्प समयके भीतर संस्कृतके इतने ज्ञाता हो जाते हैं कि देखनेसे पाश्चर्य होता है। कम
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