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जैनसम्प्रदायशिक्षा। तेह ॥ २२५ ॥ दम्पति रति क्रीड़ा प्रतें, कहत दुर्मती काम ॥ काम चित्त अभिलाष कू, कहत सुमति गुणधाम ॥ २२६ ॥ इन्द्रलोक कूँ कहत शिव, जे आगमगहीन ॥ बन्ध अभाव अचल गती, भाषत नित्य पँवीन ॥ २२७ ॥ एम अध्यातमपद लखी, करत साधना जेह ॥ चिदानन्द जिनधर्म नो, अनुभव पावै तेह ॥ २२८ ॥ मेरा मेरा क्या करै, तेरा है नहिं कोय ॥ चिदानन्द परिवार का, मेला है दिन दोय ॥ २२९ ॥ ज्ञान रवी वैराग्य जस, हिरदे चन्द्र समान ॥ तासु निकट कह किमि१२ रहै, मिथ्यातम दुख खान ॥२३०॥ जैसे कंचुकि त्याग सें, विनसत नाहि भुजंग ॥ देह त्याग थी जीव पिणे , तैसे रहत अभंग ॥ २३१ ॥ धर्म बधाये धन 'बधै, धन बध मन बधि जात ॥ मन बध सब ही बंधत हैं, बधत बधत बधि जात ॥ २३२ ॥ धर्म घटाये धन घटै, धन घट मन घटि जात ॥ मन घट सब ही घटत है, घटत घटत घटि जात ॥ २३३ ॥ यह जोवन थिरें ना रहै, दिन दिन छीजत जात ॥ चार दिनों की चांदनी, फेर अँधेरी रात ॥ २३४ ॥ तबलग जोगी जगतगुरु, जबलग रहै निरास ॥जन जोगी ममता धरै, तब जोगी जगदास ॥ २३५॥ धरम करत संसार सुख, धरम करत निरवान ॥ धरमपन्य जाणे नहीं, ते नर पशू समान ॥ २३६ ॥ क्रोधी लोभी कृपण नर, मानी अरु मैंद अन्ध ॥ चोर जुवारी चुगुल नर, आठौ दीखत अन्धं ॥ २३७ ॥ शील रतन सब से बड़ो, सब रतनन की खान ॥ तीन लोक की सम्पदा, रही शील में आन ॥२३८॥ ओछी संगति स्वान की, दो बातें दुक्ख ॥ स्ठो पकड़े पांव कूँ, तूंठो चाटै मुक्ख ॥ २३९ ॥ सतेजन मन में ना धरै, दुरजन जन के बोल ॥ पथरा मारत आम को, तई फल देत अमोल ॥ २४० ॥ पात झैड़तो इम कहै, सुण तरुवर वनराय ॥ अब के विछरे कब मिलें, दूर पड़ेंगे जाय ॥ २४१ ॥ तरुवर सुणकर बोलियो, सुण पत्ता मुझ बात ।। या जग की यह रीति है, इक आवत इक जात ॥ २४२ ॥ सुख दुख दोन संग हैं; मेटि सके नहिं कोय ॥ जैसे छाया देह की, न्यारी नेक न होय ॥२४३ ॥ जिमि पनिहारी जैवेंडी, बँचत कटै पोन ॥ तैसे नर उद्यम कियां, होत सही विद्वान ॥ २४४ ॥ तन धन परिजन रूप कुल, तरुणी तनय तुषार ॥ ये सब हैं पिण' बुद्धि नहिँ, व्यर्थ गयो अवतार ॥ २४५ ॥ मात ताँत सुत भ्रात तिय, सुगम सबहिं को मेल ॥ सत्य मित्र को जगत में, महा कष्ट से मेल ॥ २४६ ॥ उधम से लैंछिमी
१-जोड़ा, स्त्रीपुरुष ॥ २-भोग की क्रीड़ा ॥ ३-दुष्ट बुद्धिवाले ॥ ४-अच्छी बुद्धिवाले ।। ५-गुणी जन ॥ ६-शास्त्ररूपी नेत्र से रहित ॥ ७-चतुर॥ ८-आत्मा सम्बंधी स्थान ।। ९-ज्ञान और आनंद से युक्त ॥ १०-सूर्य ॥ ११-उस के। १२-कैसे॥ १३-मिथ्यारूप स्थान ॥ १४-केंचुली ॥ १५-सांप ॥ १६-भी॥ १७-अनष्ट ॥ १८-बढ़ता है ॥ १९बढता है ॥ २०-स्थिर ॥ २१-नष्ट होता जाता है॥ २२-उजाला ॥ २३-आशा से रहित ।। २४-मुक्ति ॥ २५-धर्म का मार्ग ॥ २६-कजूस ॥ २७-मद से अन्धा ॥ २८-अन्धा ॥ २९-सम्पत्ति, दौलत ।। ३०-नीच ।। ३१-कुत्ता ।। ३२-रुष्ट होकर ।। ३३-तुष्ट होकर ॥ ३४अच्छे आदमी॥ ३५-बुरे आदमी ॥ ३६-तोभी॥ ३७-पत्ता ।। ३८-गिरता हुआ ॥ ३९-पानी भरने वाली ।। ४०-रस्सी ।। ४१-पत्थर ॥ ४२-कुटुम्ब ॥ ४३-स्त्री॥ ४४-पुत्र ।। ४५-परन्तु ॥ ४६-जन्म ॥ ४७-पिता ॥ ४८-स्त्री ॥ ४९-सहज ।। ५०-मेहनत ।। ५१-लक्ष्मी, दौलत ॥
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