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द्वितीय अध्याय ।
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मिले, किलै द्रव्य से मान ॥ दुर्लभ पारस जगत में, मिलिवो मित्र सुजान ॥ २४७॥ उपजो उत्तम वंश में, सज्जन व्यर्जन समान ॥ परिभ्रमण करि तुरत ही, मेटि ताप सुखद न ॥ २४८ ॥ हैंय गय अयस सुरत्न की, प्रीक्षक को हि ॥ ि प्रीक्षक जन मन तणां, करि न सकै निरमाण ॥ २४९ ॥ हिकमत कर उदरहि भरउ. किसमत पर रहु नांह ॥ किसमत से हिकमत बड़ी, करि देखो जगमांह ॥ २५० ॥ सुजन मित्र को स्नेह नित, बधै राफ सम वीर || अंजलि जल सम कुजन को, घंटे स्नेहको नीर ॥ २५१ ॥ उत्तम जन अनुरोग तें, चोल मजीठ समान ॥ पामेर रोग पतंग सम, पल में पलटे वन ॥ २५२ ॥ जो जा मैं निसदिन वसै, सो तामै परंवीन ॥ सरितां गजकूं ले चलै, उलट चलत है मीनें ॥ २५३ ॥ थति वैय अन्तरवासना, ज्ञाँति धर्म गुण रूप ॥ जो समान तो मित्रता, अहनिशि निमे अनूप श्री नम्र रहु, , व थी वक्र || अॅक्कड़ थी अक्कड़ रहो, गुणि
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॥२५॥ पुरुष दुष्ट जनशी अनवकं ॥ २५५ ॥ देश जाति कुल धर्म को, उर राखे अभिमान ॥ धन्य तेज ना और तो, खैरेज खैर सैम मान ॥ २५६ ॥ पर सुख देखी पर जले, पर दुर्खथीज ॥ नित्य कर्म यह नीचैनूं, माने महाविनोद ॥ २५७ ॥ गुणग्राही सज्जन सदा, दोपग्रीहि छे दुष्ट ॥ पिये खून पय ना पिये, लगी जोंक थन पुष्ट ॥ २५८ ॥ तन मन धन जीवन अरू, परंभ देव प्रिय वस्तु ॥ गिणे सती पति ने सदा, अन्य न ई भ वस्तु ॥ २५९ ॥ शुभतिय से संसार सुख, संगति सुंगुरु से जाण ॥ शुचि मंत्री से राज नित, सुधरे सदा सुजाण ॥ २६० ॥ प्रायः पर की भूल को, देखे सब सार ॥ पणे न विचारे निजर्तणी, होय जु भूल हजार ॥ २६१ ॥ गती विगर अति आकुला, मैतीहीन मगरूरें ॥ रति शत्रू कृति ढँग विणा, ते जन मूर्ख जरूर ॥ २६२ ॥ नन्दजाति नटखटं सदा, पेचीली पर मार ॥ निर्दर्य निपटे संशक नित, स्वार्थसिद्धि करनर ॥ २६३ ॥ गुण विन रूप न काम को, जिम
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रोईड़ा
१- पुष्किल से मिलने वाला || २- एक प्रकार का पत्थर जिस को छूने से लोहा
६- घोड़ा ॥ ७ हाथी ॥
जाता 11 २-ज्ञानवान् ॥ ४- पंखा ॥ ५-घूमना ॥ ९- परीक्षा करने वाला १०- पहिचान ॥। ११ - तदवीर ॥। १४- न च ॥ १५ - रंग ॥ १६-स्वभाव ।। १७-चतुर ॥ २१ - अवस्था, उम्र ॥ २२ - भीतरी इच्छा २६-नमने वाला || २७ से ॥ २८-टेढ़ा ॥
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॥
३४ - गधा
स्थिति, हालत । २५- अद्भुत ।। ३१ - दिल || ३२ घमण्ड || ३३ - अत्यन्त ही दुःख से ही ।। वाला ४१ - दोष को लेनेवाला || व्रता स्त्री । ४६ - दूसरा ॥ ४७-प्यारी ॥
३७ - आनन्द || ३८-नीच का
॥
४२ - दूध
॥
उत्तम गुरु ॥ ५१ - पवित्र, शुद्ध कुल || ५६ - बुद्धि से रहित ॥ दार ॥ ६१-पेंचवाली ॥ ६२ दया से रहित ॥
६५ - अपना मतलब || ६६ - करने वाला ॥
५२-अक्सर ॥
५७- घमण्डी ॥
१२ खराब आदमी ।।
१८- नदी ॥
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४३ - उत्तम
४८ - अच्छी स्त्री ॥
२३ - जाति ॥
- अकड़ने वाला
॥
३९ - बड़ी
५३- परन्तु
॥
॥
५८ कार्य ॥
६३ - अत्यन्त ॥
१९-मछली ॥
३५- समान ॥
खुशी ॥। ४० गुण को लेने
सोना हो
८ - लोहा ॥
॥।
६७- एक प्रकार का जंगली वृक्ष ||
१३- प्रेम ॥ २०
२४ - दिनरात ॥
३० - सीधा ॥
३६- दूसरे के
५४- अपनी ॥
५९ - आनंदित ।। ६४- शंका के
४४-प्यारी ॥ ४५-पति
४९- अच्छी गति ॥ ५०
५५- व्या ६०-ऐटसहित ॥
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