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द्वितीय अध्याय ।
मृगनाभि में, इंडै फिर वनवास ॥ २०५ ॥ सब काहू की कहत है, भली बुरी संसार ॥ दुर्योधन की दुष्टता, विक्रम को उपकार ॥ २०६ ॥ वय समान रुचि होत है, रवि समान मन मोदें ॥ बालक खेल सुहावई, यौवन विपै विनोद ॥ २०७ ॥ वह सम्पति किहि काम की, जेनि काहू के होय ॥ जाहि कमावै कष्ट करि, विलसै
औढ़: कोय ॥ २०८ ॥ नृप गुरु शुचि तिय सेविये, मध्यभाव जगमांहि ॥ है विनाः। अनि निकट से, दूर रहे फल नाहि ॥ २०९ ॥ देखत है जग जात है, तउ मर्मत से मेल ॥ जानत हु या जगत को, देखत भूली खेल ॥२१० ॥ सुजन बचावन कष्टसे, रहै निरन्तर साथ ॥ नयन संहाई ज्यों पलक, देह सहाई हाथ ॥२११ ॥ धनी होत निर्धन कबहुँ, निरधन से धनवान ॥ बड़ी होत निशि गीत ऋतु, ज्यों ग्रीषम दिन मान ॥ २१२ ॥ ज्यों ज्यों छूट अंजानपन, त्यो त्यो प्रेम विका व ॥ जैसे कैरी आम की, पकड़त पके मिठास ॥ २१३ ॥ थोरा थोरी प्रीति की, कीन्हें बढ़न हुलास ॥ अति खायै उपजै अरुचि, थोड़ी वस्तु मिठास ॥ २४ ॥ गेहे तत्त्व ज्ञानी पुरुष, बात विचारि विचारि ॥ मथेनहारि तजि छाछ को, माखन लेत निकारि ॥ २१५॥ जो उपजै सोई करे, जिहि कुछ जो अभ्यास ॥ छोटे मच्छ हू जल तिरै, पंखी उड़े अकास ॥२१६ ॥ यथायोग सब मिलत है, जो विधि लिख्यो अंकुर ॥ खल गुल भोग गरीविनी, रानी पान कपूर ॥ २७ ॥ *हिंमा दुख नी बेलडी, हिंसा दुख नी खाण ॥ बहुत जीव नरके गया, हिंसा तणे असा ॥ २१८ ॥ दया सुक्ख नी वेलड़ी, दया सुक्ख नी खाण ॥ बहुत जीव मुले गया, दया तणे परिमाण ॥ २१९॥ जीव मारता नरक छे, राखन्तां छे सांग ॥ यह दोनों हैं वाटेंडी, जिण भोवै तिण लैंग्ग ॥ २२० ॥ बिन कपास कपड़ो नहीं, दया विना नहीं धर्म ॥ पाप नहीं हिंसा विना, बूझो एहिजै मर्म ॥ २२१ ॥ धन बंछै इक अँधम नर, उत्तम बंछ मान ॥ ते थानक सहु "छंडिये, जिह लहिये अपमान ॥ २२२ ॥ धर्म अर्थ अरु काम शिव', साधन जग में चार ॥ व्यव गरे व्यवहार लख, निश्चय निज गुण धार ॥ २२३ ॥ मूरख कुल आचार थी, ताणत धर्म संदीव ॥ वस्तु स्वभाव धरम सुधी, कहत अनुभवी जीव ॥ २२४ ॥ खेह वजाना . अरथ, कहत अजॉनी जेह ॥ कहत द्रव्य दरसाव ., अर्थ सुजॉनी
१. बदमाशी ॥ २-राजा विक्रमादित्य ॥ ३-भलाई ।। ४-उम्र ।। '५-खुशी ॥ ६-अच्छा लगत है।। ७-जवानी ।। ८-भोग का आनन्द ।। ९-मत ।। १०-भोगता है॥ ११-पवित्र । १२-स्त्री ॥ १३-बीच के मन से ॥ १४-मोह, मेरा तेरा ॥ १५-हमेशा ।। १६-त्र॥ १७-मददगार॥ १८-अज्ञानता। १९-कच्चा आम ॥ २०-आनन्द।। २१मीठा न॥ २२-लेता है।। २३-असली मतलब ॥ २४-ज्ञानवान् ।। २५-मथने वाली ।। २६-मछली।। २७-विधाता॥ २८-चतुर ॥ * यहां (२१८) से लेकर-ये सब दोहे-मारवाड़ी चालक हैं-अर्थात् इन में मारबाड़ी शब्द अधिक हैं ॥ २९-बेल ॥ ३०-स्वर्ग ॥ ३१-मार्ग ॥ ३२-अच्छा लगे॥ ३३-पकड़ ले ॥ ३४-यही ॥ ३५-असली हाल ।। ३६-चाहता है । ३७ नाच॥ १८-स्थान ।। ३९-अवश्य ।। ४०-छोड़ देना चाहिये ।। ४१-अनादर, तिरस्कार ।। ४२-मोक्ष ।। ४३-अपना ॥ ४४-सदैव ॥ ४५-अनुभव ज्ञानवाले ।। ४६-अज्ञानी ज्ञान से हीन ॥ ४७-अच्छे ज्ञानवाले ॥
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