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पञ्चम अध्याय ।
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२५-यदि कोई बाई तरफ खड़ा हो कर प्रश्न करे तथा उस समय अपना सूर्य स्वर चलता हो तो चन्द्र योग स्वर के विना वह कार्यसिद्ध नहीं होगा।
२६-इसी प्रकार यदि कोई अपने सामने अथवा अपने से ऊपर (ऊँचा) खड़ा हो कर प्रश्न करे तथा उस समय अपना सूर्य स्वर चलता हो तो चन्द्र स्वर के सब योगों के मिले विना वह कार्य कभी सिद्ध नहीं होगा।
खरों मे पाँचों तत्त्वों की पहिचान । उक्त दोनों (चन्द्र और सूर्य) स्वरों में पाँच तत्त्व चलते हैं तथा उन (तत्त्वों) का रंग, परिमाण, आकार और काल भी विशेष होता है, इस लिये स्वरोदयज्ञान में इस विषय का भी जान लेना अत्यावश्यक है, क्योंकि जो पुरुष इन के विज्ञान को अच्छे प्रकार से समझ लेता है उस की कही हुई बात अवश्य मिलती है, इस लिये अब इन के विषय में आवश्यक वर्णन करते हैं:
१-पृथिवी, जल, अग्नि, वायु और आकाश, ये पाँच तत्व हैं, इन में से प्रथम दो का अर्थात् पृथिवी और जल का स्वामी चन्द्र है और शेष तीनों का अर्थात् अग्नि, वायु और आकाश का स्वामी सूर्य है।
२-पीला, सफेद, लाल, हरा और काला, ये पाँच वर्ण (रंग) क्रम से पाँचों तत्त्वों के जानने चाहियें अर्थात् पृथिवी तत्व का वर्ण पीला, जल तत्व का वर्ण सफेद, अग्नि तत्त्व का वर्ण लाल, वायु तत्व का वर्ण हरा और आकाश तत्व का वर्ण काला है।
३-पृथिवी तत्व सामने चलता है तथा नासिका (नाक) से बारह अङ्गुल तक दूर जाता है और उस के स्वर के साथ समचौरस आकार होता है।
४-जल तत्व नीचे की तरफ चलता है तथा नासिका से सोलह अङ्गुल तक दूर जाता है और उस का चन्द्रमा के समान गोल आकार है।
५-अग्नि तत्व ऊपर की तरफ चलता है तथा नासिका से चार अङ्गुल तक दूर जाता है और उस का त्रिकोण आकार है।
६-वायु तत्व टेढ़ा (तिरछा) चलता है तथा नासिका से आठ अङ्गुल तक दूर जाता है और उस का ध्वजा के समान आकार है।
७-आकाश तत्त्व नासिका के भीतर ही चलता है अर्थात् दोनों स्वरों में (सुखमना स्वर में) चलता है तथा इस का आकार कोई नहीं है।
८-एक एक (प्रत्येक ) स्वर ढाई घड़ी तक अर्थात् एक घण्टे तक चला करता है और उस में उक्त पाँचों तत्व इस रीति से रात दिन चलते हैं कि
१-बहत जरूरी ॥ २-नाकपर अंगलिके रखने से यदि श्वास बारह अंगुल तक दर जाता हुआ ज्ञात हो तो पृथिवी तत्त्व समझना चाहिये, इसी प्रकार शेष तत्त्वों के परिमाण के विषय में समझना चाहिये॥ ३-क्योंकि आकाश शून्य पदार्थ है ॥
६. जै० सं०
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