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________________ ७०८ जैनसम्प्रदायशिक्षा । अमावास्या तक शेष तिथियों में भी समझना चाहिये, इन में जब अपनी २ तिथियों में दोनों (चन्द्र और सूर्य ) स्वर चलते हैं तब वे कल्याणकारी होते हैं । १५-शुक्ल पक्ष की पन्द्रह तिथियों में से क्रम २ से तीन २ तिथियाँ चन्द्र और सूर्य की होती हैं अर्थात् प्रतिपद् , द्वितीया और तृतीया, ये तीन तिथियाँ चन्द्र की हैं तथा चतुर्थी, पञ्चमी और षष्टी, ये तीन तिथियाँ सूर्य की हैं, इसी प्रकार पूर्णमासी तक शेष तिथियों में भी समझना चाहिये इन में भी इन दोनों (चन्द्र और सूर्य) स्वरों का अपनी २ तिथियों में प्रातःकाल चलना शुभकारी होता है। १६-वृश्चिक, सिंह, वृष और कुम्भ, ये चार राशियाँ चन्द्र स्वर की हैं तथा ये राशियाँ) स्थिर कार्यों में श्रेष्ठ हैं । १७-कर्क, मकर, तुल और मेष, ये चार राशियाँ सूर्य स्वर की हैं तथा ये ( राशियाँ) चर कार्यों में श्रेष्ठ हैं। १८-मीन, मिथुन, धन और कन्या, ये सुखमना के द्विस्वभाव लग्न हैं, इन में कार्य के करने से हानि होती है। १९-उक्त बारह राशियों से बारह महीने भी जान लेने चाहिथें अर्थात् ऊपर लिखी जो सङ्क्रान्ति लगे वही सूर्य; चन्द्र और सुखमना के महीने समझने चाहिये। २०-यदि कोई मनुष्य अपने किसी कार्य के लिये प्रश्न करने को आवे तथा अपने सामने; बायें तरफ अथवा ऊपर (ऊँचा) ठहर कर प्रश्न करे और उस समय अपना चन्द्र स्वर चलता हो तो कह देना चाहिये कि-तेरा कार्य सिद्ध होगा। २१-यदि अपने नीचे, अपने पीछे अथवा दाहिने तरफ खड़ा रह कर कोई प्रश्न करे और उस समय अपना सूर्य स्वर चलता हो तो भी कह देना चाहिये कि-तेरा कार्य सिद्ध होगा। २२-यदि कोई दाहिने तरफ खड़ा होकर प्रश्न करे और उस समय अपना सूर्य स्वर चलता हो तथा लग्न; वार और तिथि का भी सब योग मिल जावे तो कह देना चाहिये कि-तेरा कार्य अवश्य सिद्ध होगा। २३-यदि प्रश्न करनेवाला दाहिनी तरफ खड़ा हो कर वा बैठ कर प्रश्न करे और उस समय अपना चन्द्र स्वर चलता हो तो सूर्य की तिथि और वार के विना वह शून्य (खाली) दिशा का प्रश्न सिद्ध नहीं हो सकता है। २४-यदि कोई पीछे खड़ा हो कर प्रश्न करे और उस समय अपना चन्द्र स्वर चलता हो तो कह देना चाहिये कि-कार्य सिद्ध नहीं होगा । - १-मङ्गल, शनि और रवि, इन वारों का स्वामी सूर्य स्वर है तथा सोम, बुध, गुरु, और शुक्र. इन वारों का स्वामी चन्द्र स्वर है ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034525
Book TitleJain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreepalchandra Yati
PublisherPandurang Jawaji
Publication Year1931
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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